सकारात्मक सोच
पुरस्कृत कहानी
सकारात्मक सोच
प्रातः, हम मित्र अंबर के साथ प्रातः कालीन भ्रमण पर निकले। तेज गति से भ्रमण करते हुए ,साथ में विचार विमर्श करते हुए ,हमने पाया कि, इस आर्थिक युग में योग्यता का पैमाना, आर्थिक स्तर व भौतिक संसाधनों पर निर्भर करता है। भौतिकता की इस आपाधापी में व्यक्ति स्वयं के लिए समय नहीं निकाल पाता ।स्वार्थ परक राजनीति व सामाजिक परिवेश के कारण ,व्यक्ति एक दूसरे से जुड़ाव महसूस नहीं करता ।
“राष्ट्र की आर्थिक उन्नति वैश्विक व राष्ट्र की परिस्थितियों पर निर्भर करती है। ऐसे में व्यक्ति की बिसात ही क्या, जो मेहनत कर खून पसीने से कमाए धन से जीवको पार्जन कर सके। उसे कुछ न कुछ अनैतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है।
अतः अंबर जी ने, निष्कर्ष निकाला कि, व्यक्ति के भीतर सकारात्मक एवं नकारात्मक सोच होती है।
प्रवीण जी ने पूछा- अंबर जी सकारात्मक सोच का अर्थ क्या है?
अंबर- सकारात्मक सोच व्यक्ति को उत्साहित व सफलता प्राप्त करने हेतु प्रेरित करती है ।जीवन में घटित अवमाननाओं, अर्थात अपमान, दुःख, असफलता से बढ़कर व्यक्ति स्थितप्रज्ञ हो समस्या से समान रुप व्यवहार करता है। उसे कभी निराशा ,हताशा या अपमान का भय नहीं रहता। व्यक्ति हर पल कुछ न कुछ अच्छा करने की सोचता है ।जो उसकी प्रसन्नता का कारण होता है ।
प्रवीण जी ने फिर पूछा -नकारात्मक सोच से आपका क्या तात्पर्य है?
अंबर जी – नकारात्मक सोच व्यक्ति को निराशा ,हताशा के दलदल में धकेल देती है ।व्यक्ति हिम्मत हार कर अपने आप को अक्षम ,कमजोर एवं दोषी मानने लगता है ।उसके विचारों में परिवर्तन संभव है ,यदि उसने नकारात्मक भावों में से सकारात्मक विचार खोज लिए हैं ।हर सिक्के के दो पहलू हैं ।किंतु हर पहलू पर हमें सकारात्मक सोच रखनी चाहिए ।
अब तक प्रवीण जी अंबर जी के विचारों से सहमत हो चुके थे ।
अतः एक स्थान पर विश्राम करते हुए दोनों ने सकारात्मक सोच ना होने के दुष्परिणामों पर विचार करना प्रारंभ किया ।
अंबर जी ने पूछा- प्रवीण जी अब आप सकारात्मक सोच के प्रभाव को पूरी तरह जान गए होंगे तो कृपया सकारात्मक सोच के लाभ पर प्रकाश डालें ।
प्रवीण जी ने कहा- किसी भी कार्य को करने में धैर्य एवं सकारात्मकता की आवश्यकता होती है ।अगर धैर्य और सकारात्मकता ना रखा जाए ,तो कोई भी कार्य संपन्न नहीं किया जा सकता।
उदाहरण के तौर पर, यदि किसी आदमी का वजन बहुत बढ़ चुका है और उसे वजन कम करना है तो ,उसे एक लंबी प्रक्रिया की शुरुआत करनी पड़ेगी। उसे स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों का त्याग करना पड़ेगा ,और नियमित तौर पर कसरत करनी होगी ।यह सब बहुत कठिन है, लेकिन ना मुमकिन नहीं ।
प्रवीण जी-
सकारात्मक सोच ना होने का नुकसान यह है, कि, आप अपनी प्रतिभा व अपने अंदर की अच्छाइयों को नहीं जान पाते ।
सकारात्मक सोच ना होने के कारण आप अपनों से भी कटने लगते हैं, दूर होने लगते हैं।
यह लोगों को आप के प्रति उदासीन करता है।
सकारात्मक सोच ना होने कारण आपका आत्मविश्वास खत्म हो जाता है। वह व्यक्ति हर वक्त नर्वस रहता है।
अंबर जी ने पूछा- प्रवीण जी अब आप सकारात्मक सोच के प्रभाव को पूरी तरह जान गए होंगे, तो कृपया सकारात्मक सोच के लाभ पर प्रकाश डालें।
प्रवीण जी ने कहा -सकारात्मक सोच से व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। उसके साथ साथ कैरियर पर भी प्रभाव पड़ता है। यह कार्य क्षेत्र की क्षमता को बढ़ाता है।
अंबर जी ने कहा- प्रवीण जी, हम नकारात्मक सोच से कैसे बच सकते हैं?
प्रवीण जी ने कहा- मित्र, हमें कुसंगति से बचना होगा ।कई बार हम ऐसे लोगों की संगति में फंस जाते हैं, जो हमेशा अपने दुखों का रोना रोते रहते हैं। जीवन में उन्हें खुश रहना आता ही नहीं । अच्छा है मित्र, ऐसे लोगों से बचा जाए ।
मित्र, व्यर्थ की बहस से बचे। सफलता पाने के लिए व्यक्ति को व्यर्थ की बहस बाजी से बचना चाहिए ।उस से तनाव बढ़ता है।
और मित्र ,व्यक्ति को हर रोज कुछ नया करने की सोचना चाहिए।
सकारात्मक सोच के लिए अपनी जीवनशैली में परिवर्तन लाना नितांत आवश्यक है, और सोच का दायरा बढ़ाना चाहिए ।आप जिस चीज को सोचेंगे ,वही आपको मिलेगी ।जो व्यक्तिअपनी सोच को सीमित रखता है ,वह अपने सपनों को कभी पूरा नहीं कर पाता है ।
जीवन शैली में, व्यक्ति को ध्यान एवं साधना के लिए समय निकालना चाहिए ।ध्यान योग व अनुलोम-विलोम द्वारा मन एकाग्र किया जा सकता है। साथ ही सकारात्मक विचारों को अपनाया जा सकता है।
सामाजिक कार्यों, जैसे उत्सव, खेलकूद समारोह एवं विवाह समारोह में भी शामिल होना चाहिए। इससे सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है,व इससे अकेलापन दूर होता है। मेलजोल बढता है।
“सफलता और हर्ष के बीच की दूरी बस दस कदम की है हमें सफलता तभी मिल सकती है जब हम नकारात्मक सोच को त्याग कर स्वयं को इस के योग्य समझेंगे फिर देखिए की सोच के बदलने मात्र से ही आपके जीवन में कितना परिवर्तन आता है”।
प्रातः कालीन भ्रमण का समय समाप्त हो गया था।चर्चा सार्थक हुई,अतः हम सब अपने अपने घर की ओर रवाना हुए।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव,” प्रेम”