Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Feb 2025 · 3 min read

भारत में महिला सशक्तिकरण: लैंगिक समानता के लिए गंभीर चिंता या राजनीतिक नौटंकी?

भारत के सामाजिक-राजनीतिक विमर्श में महिला सशक्तिकरण एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है। महिलाओं के उत्थान और लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के प्रयास तो किए गए हैं, लेकिन इस बात की चिंता बढ़ रही है कि इस विषय का इस्तेमाल अक्सर बदलाव लाने के ईमानदार प्रयास के बजाय एक राजनीतिक उपकरण के रूप में किया जाता है। भारतीय राजनीतिक दृष्टिकोण से यह जांच दोनों आयामों की पड़ताल करती है।

1. महिला सशक्तिकरण: लैंगिक समानता के लिए एक वास्तविक चिंता

a) संवैधानिक और कानूनी प्रावधान

भारत का संविधान लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए कई सुरक्षा उपाय प्रदान करता है:

अनुच्छेद 15(3) राज्य को महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देता है।

अनुच्छेद 39(डी) समान काम के लिए समान वेतन सुनिश्चित करता है।

अनुच्छेद 42 मानवीय कार्य स्थितियों और मातृत्व राहत को अनिवार्य बनाता है।

मातृत्व लाभ अधिनियम (1961), POSH अधिनियम (2013) और घरेलू हिंसा अधिनियम (2005) जैसे कानून महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करते हैं।

ख) महिला सशक्तिकरण के लिए सरकारी पहल

उत्तरवर्ती सरकारों ने महिलाओं के उत्थान के लिए योजनाएँ शुरू की हैं:

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (2015) – जिसका उद्देश्य घटते बाल लिंग अनुपात को सुधारना और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना है।

उज्ज्वला योजना (2016) – महिलाओं को मुफ़्त एलपीजी कनेक्शन प्रदान करना, उनके स्वास्थ्य में सुधार करना और घर के अंदर प्रदूषण को कम करना।

सुकन्या समृद्धि योजना – माता-पिता को अपनी बेटियों के भविष्य में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

पंचायती राज में महिला आरक्षण – स्थानीय शासन में 33% आरक्षण ने महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाया है।

हाल ही में महिला आरक्षण विधेयक (2023) – लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33% आरक्षण प्रदान करने का प्रयास करता है।

ग) न्यायपालिका और सामाजिक आंदोलनों की भूमिका

विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) और ट्रिपल तलाक़ फ़ैसले (2019) जैसे ऐतिहासिक फ़ैसलों ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की है।

मीटू और पिंजरा तोड़ जैसे आंदोलनों ने लिंग आधारित भेदभाव और उत्पीड़न को उजागर किया है।

इस प्रकार, भारत में वास्तविक लैंगिक समानता प्रयासों का समर्थन करने वाला एक मजबूत कानूनी और नीतिगत ढांचा है।

2. राजनीतिक नौटंकी के रूप में महिला सशक्तिकरण

a) राजनीतिक दिखावा और प्रतीकवाद

कई राजनीतिक दल महिला सशक्तिकरण को नारे के रूप में इस्तेमाल करते हैं, लेकिन ठोस कार्रवाई करने में विफल रहते हैं। उदाहरणों में शामिल हैं:

चुनावी घोषणापत्र और मुफ्त उपहार: राजनीतिक दल महिलाओं के लिए साइकिल, नकद प्रोत्साहन और मुफ्त एलपीजी सिलेंडर का वादा करते हैं, लेकिन ये जरूरी नहीं कि उन्हें संरचनात्मक रूप से सशक्त बनाएं।

निर्णय लेने वाले निकायों में कम प्रतिनिधित्व: बयानबाजी के बावजूद, संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है। महिला आरक्षण विधेयक, हालांकि पारित हो गया, लेकिन कार्यान्वयन में देरी हुई है।

b) चयनात्मक नारीवाद और वोट बैंक की राजनीति

राजनीतिक दल अक्सर वास्तविक बदलाव सुनिश्चित करने के बजाय विरोधियों को निशाना बनाने के लिए लिंग संबंधी मुद्दों को चुनिंदा रूप से उजागर करते हैं।

जाति और धर्म आधारित राजनीति: ट्रिपल तलाक जैसे मुद्दों को महिलाओं के अधिकारों के मामले के रूप में पेश किया गया, लेकिन इससे चुनावी हितों की पूर्ति भी हुई।

c) प्रमुख योजनाओं का खराब प्रदर्शन

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ: रिपोर्ट बताती है कि फंड का केवल एक छोटा हिस्सा ही वास्तविक कार्यान्वयन पर खर्च होता है, जिसमें से अधिकांश विज्ञापनों पर खर्च होता है।

उज्ज्वला योजना: कई लाभार्थी रीफिल लागत वहन करने के लिए संघर्ष करते हैं, जिससे यह योजना लंबे समय में अप्रभावी हो जाती है।

3. निष्कर्ष: एक मिश्रित वास्तविकता

भारत में महिला सशक्तिकरण वास्तविक प्रयासों और राजनीतिक पैंतरेबाज़ी का मिश्रण है। जबकि संवैधानिक प्रावधानों, न्यायिक सक्रियता और कुछ सरकारी पहलों ने प्रगति में योगदान दिया है, राजनीतिक दिखावटीपन अक्सर इन प्रयासों को कमजोर कर देता है। सच्चे सशक्तिकरण के लिए केवल चुनावी वादों के बजाय लगातार नीति कार्यान्वयन, वित्तीय निवेश और सामाजिक मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता होती है।

इस प्रकार, जबकि महिला सशक्तिकरण एक गंभीर चिंता का विषय है, इसे अक्सर चुनावी लाभ के लिए एक राजनीतिक उपकरण के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। सार्थक लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए, भारत को बयानबाजी से आगे बढ़कर निरंतर संरचनात्मक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

Language: Hindi
Tag: लेख
49 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Shyam Sundar Subramanian
View all

You may also like these posts

मुझे हो गया है तुमसे प्यार,
मुझे हो गया है तुमसे प्यार,
Jyoti Roshni
*वैदिक संस्कृति एक अरब छियानवे करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी है:
*वैदिक संस्कृति एक अरब छियानवे करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी है:
Ravi Prakash
रस का सम्बन्ध विचार से
रस का सम्बन्ध विचार से
कवि रमेशराज
चुनाव के खेल
चुनाव के खेल
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
गीत- रचा तुमको दिया संसार...
गीत- रचा तुमको दिया संसार...
आर.एस. 'प्रीतम'
गरीबी
गरीबी
Dr.sima
मन से मन का बंधन
मन से मन का बंधन
Shubham Anand Manmeet
#दोहा-
#दोहा-
*प्रणय प्रभात*
सीख गांव की
सीख गांव की
Mangilal 713
हमारा दिल।
हमारा दिल।
Taj Mohammad
मुनाफ़िक़ दोस्त उतना ही ख़तरनाक है
मुनाफ़िक़ दोस्त उतना ही ख़तरनाक है
अंसार एटवी
हकीकत
हकीकत
dr rajmati Surana
अटल
अटल
राकेश चौरसिया
तस्वीर तुम्हारी देखी तो
तस्वीर तुम्हारी देखी तो
VINOD CHAUHAN
A daughter's reply
A daughter's reply
Bidyadhar Mantry
प्राण प्रतिष्ठा
प्राण प्रतिष्ठा
Mahender Singh
नारी
नारी
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
जिन्दा होने का सबूत दो
जिन्दा होने का सबूत दो
gurudeenverma198
3 *शख्सियत*
3 *शख्सियत*
Dr .Shweta sood 'Madhu'
2983.*पूर्णिका*
2983.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
क्या गिला क्या शिकायत होगी,
क्या गिला क्या शिकायत होगी,
श्याम सांवरा
महबूबा और फौजी।
महबूबा और फौजी।
Rj Anand Prajapati
सूरज की हठखेलियाँ, चंदा जोड़े हाथ।
सूरज की हठखेलियाँ, चंदा जोड़े हाथ।
Suryakant Dwivedi
ग़ज़ल सगीर
ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
विरक्ती
विरक्ती
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
वफ़ा के ख़ज़ाने खोजने निकला था एक बेवफ़ा,
वफ़ा के ख़ज़ाने खोजने निकला था एक बेवफ़ा,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
ग़ज़ल
ग़ज़ल
संतोष सोनी 'तोषी'
सफल सारथी  अश्व की,
सफल सारथी अश्व की,
sushil sarna
वर्ण पिरामिड
वर्ण पिरामिड
Rambali Mishra
चिड़िया
चिड़िया
Kanchan Khanna
Loading...