Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Apr 2025 · 19 min read

अटल

परतंत्र भारत का एक ही सपना था किसी तरह गुलामी का मिथक तोड़ा जाएं, जिसके लिए क्रांति छिड़ी हुई थी। हमारे क्रांतिकारी वीर सपूत उम्र की सीमा लांघ कर भारत मां को आजाद कराने के लिए खून की होली खेल रहे थे। हमारी माताएं अपने बेटों को देश प्रेम में न्योछावर कर रही थी, हमारी बहनें राखी के उपहार स्वरूप अपने जांबाज भाईयों से भारत मां को मुक्त कराने का संकल्प दुहरा रही थी। आजाद भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, चंद्र शेखर आजाद, तात्या टोपे, राम प्रसाद बिस्मिल, राज गुरु सुखदेव आदि अनेक क्रांतिकारियों ने अपने जीवन को देश के लिए समर्पित कर दिये। भारत को आजाद कराने के लिए कई संगठन कार्यरत थे। इसी बीच एक ऐसे पुरुष का जन्म हुआ, जो आजादी बाद देश के प्रगति का मुख्य अध्याय लिखा। एशिया ही नहीं संपूर्ण विश्व में भारत को अलग पहचान मिली।आधुनिक भारतीय राजनीति के मार्गदर्शक श्री अटल बिहारी वाजपेयी बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। राष्ट्रीय क्षितिज पर सुशासन के पक्षधर, विकास पुरुष और स्वच्छ छवि के कारण अजातशत्रु कहे जानें वाले युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जी एक सह हृदयी कवि और कोमल हृदयी, संवेदनशील पुरुष भी थे। सुबह के चार बजे थे। मैं पोएट्री संबंधित कुछ कार्य कर रहा था अचानक मेरे मस्तिष्क में एक रचना दौर पड़ी और मेरा तन मन उत्तेजना से भर गया। वह रचना किसी और की नहीं बल्कि प्रखर वक्ता, कुशल कवि व लेखक भारत रत्न भूतपूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय अटल बिहारी वाजपेई जी की थी –
हिंदू तन मन हिंदू जीवन रग रग हिंदू मेरा परिचय।

मैं शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार-क्षार।
डमरू की वह प्रलय-ध्वनि हूं जिसमें नचता भीषण संहार।
रणचण्डी की अतृप्त प्यास, मैं दुर्गा का उन्मत्त हास।
मैं यम की प्रलयंकर पुकार, जलते मरघट का धुआंधार।
फिर अन्तरतम की ज्वाला से, जगती में आग लगा दूं मैं।
यदि धधक उठे जल, थल, अम्बर, जड़, चेतन तो कैसा विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मैं आदि पुरुष, निर्भयता का वरदान लिए आया भू पर।
पय पीकर सब मरते आए, मैं अमर हुआ लो विष पी कर।
अधरों की प्यास बुझाई है, पी कर मैंने वह आग प्रखर।
हो जाती दुनिया भस्मसात्, जिसको पल भर में ही छूकर।
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन।
मैं नर, नारायण, नीलकंठ बन गया न इस में कुछ संशय।
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मैं अखिल विश्व का गुरु महान्, देता विद्या का अमरदान।
मैंने दिखलाया मुक्ति-मार्ग, मैंने सिखलाया ब्रह्मज्ञान।
मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर।
मानव के मन का अंधकार, क्या कभी सामने सका ठहर?
मेरा स्वर नभ में घहर-घहर, सागर के जल में छहर-छहर।
इस कोने से उस कोने तक, कर सकता जगती सौरभमय।
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मैं तेज पुंज, तमलीन जगत में फैलाया मैंने प्रकाश।
जगती का रच करके विनाश, कब चाहा है निज का विकास?
शरणागत की रक्षा की है, मैंने अपना जीवन दे कर।
विश्वास नहीं यदि आता तो साक्षी है यह इतिहास अमर।
यदि आज देहली के खण्डहर, सदियों की निद्रा से जगकर।
गुंजार उठे उंचे स्वर से ‘हिन्दू की जय’ तो क्या विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

दुनिया के वीराने पथ पर जब-जब नर ने खाई ठोकर।
दो आंसू शेष बचा पाया जब-जब मानव सब कुछ खोकर।
मैं आया तभी द्रवित हो कर, मैं आया ज्ञानदीप ले कर।
भूला-भटका मानव पथ पर चल निकला सोते से जग कर।
पथ के आवर्तों से थक कर, जो बैठ गया आधे पथ पर।
उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढ़ निश्चय।
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मैंने छाती का लहू पिला पाले विदेश के क्षुधित लाल।
मुझ को मानव में भेद नहीं, मेरा अंतस्थल वर विशाल।
जग के ठुकराए लोगों को, लो मेरे घर का खुला द्वार।
अपना सब कुछ लुटा चुका, फिर भी अक्षय है धनागार।
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयों का वह राजमुकुट।
यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरीट तो क्या विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मैं ‍वीर पुत्र, मेरी जननी के जगती में जौहर अपार।
अकबर के पुत्रों से पूछो, क्या याद उन्हें मीना बाजार?
क्या याद उन्हें चित्तौड़ दुर्ग में जलने वाला आग प्रखर?
जब हाय सहस्रों माताएं, तिल-तिल जलकर हो गईं अमर।
वह बुझने वाली आग नहीं, रग-रग में उसे समाए हूं।
यदि कभी अचानक फूट पड़े विप्लव लेकर तो क्या विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

होकर स्वतंत्र मैंने कब चाहा है कर लूं जग को गुलाम?
मैंने तो सदा सिखाया करना अपने मन को गुलाम।
गोपाल-राम के नामों पर कब मैंने अत्याचार किए?
कब दुनिया को हिन्दू करने घर-घर में नरसंहार किए?
कब बतलाए काबुल में जा कर कितनी मस्जिद तोड़ीं?
भूभाग नहीं, शत-शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय।
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मैं एक बिंदु, परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दू समाज।
मेरा-इसका संबंध अमर, मैं व्यक्ति और यह है समाज।
इससे मैंने पाया तन-मन, इससे मैंने पाया जीवन।
मेरा तो बस कर्तव्य यही, कर दूं सब कुछ इसके अर्पण।
मैं तो समाज की थाती हूं, मैं तो समाज का हूं सेवक।
मैं तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय।
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

अटल जी की रचनाओं से मेरा बचपन से ही लगाव रहा है । अटल जी ने हमेशा जीवन की चुनौतियों का सामना आगे बढ़ कर किया। अपने राजनीतिक जीवन में कविताओं से लोगों का मन मोहने वाले अटल जी की कविताएं दिल को छू जाती हैं। ज़िक्र राजनीति का हो या कविताओं का, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे व्यक्तित्व का नाम इन दोनों ही सूचियों में बड़े सम्मान के साथ अंकित है। एक राजनीतिज्ञ के लिए जितना व्यवहारिक होना ज़रूरी है, एक कवि होने के लिए उतना ही भावनात्मक होना भी ज़रूरी है। लेकिन अटल जी दोनों के ही संयोग से बने एक विशिष्ट व्यक्ति रहे। जिसको दो दो रुपों में मां भारती ने सेवा का उपयुक्त अवसर प्रदान किया और उन्होंने इस जिम्मेदारी को बड़ी ही इमानदारी और सहजता के साथ निर्वाहन भी किया। अटल जी बचपन से ही अंतर्मुखी और प्रतिभा संपन्न व्यक्ति थे। उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के प्राचीन स्थान बटेश्वर के मूल निवासी पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेई मध्यप्रदेश के ग्वालियर विरासत में अध्यापक थे। अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर,1924 को ब्रह्म मूहूर्त में मध्यप्रदेश के ग्वालियर में ही हुआ था। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी हिन्दी व ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि थे। अत: काव्य लिखने की कला उन्हें विरासत में मिली।
उत्तर प्रदेश के आगरा ज़िले में स्थित बटेश्वर गांव यमुना नदी के किनारे बसा हुआ हिंदुओं और बौद्धों के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र है।यहां बटेश्वर नाथ मंदिर भगवान शिव का पूज्य धाम है। धारणा यह है कि यहां कभी एक बरगद के पेड़ के नीचे भगवान शिव ने विश्राम किया था, इसलिए इस स्थली को ही बटेश्वर धाम के नाम से जाना जाता। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार बटेश्वर धाम का बड़ा ही महत्व एवं मान्यताएं है।
अटल जी बचपन में स्वभाव से बड़ा नटखट थे। मां, बाबा के लाख मना करने के बाद भी अपने दोस्तों के साथ यमुना नदी में नहाने चले जाते और बाबा को अपनी ओर आता देखकर इधर उधर छूप जाया करते थे। ऐसा न करने के लिए मां बहुत समझाती और सौगंध देती थी। क्योंकि अटल जी अपने तीन भाईयों में सबसे छोटे थे, इसलिए मां से अतिरिक्त प्रेम व दुलार मिल जाता था। सबसे बड़े भाई अवध बिहारी, फिर सदा बिहारी, प्रेम बिहारी तब अटल बिहारी इनसे दो बड़ी बहनें विमला और कमला थी, केवल एक उर्मिला उम्र में इनसे छोटी थी। इनके पिता दशवी पास करने के बाद ही नौकरी पा गए थे, लेकिन नौकरी करते हुए ही इंटरमीडिएट, बीए और एमए की पढ़ाई पूरी की। अपने शैक्षिक योग्यता की वजह से इन्हें बाद में मुख्य अध्यापक और प्रधानाचार्य के पद पर भी काम करने का अवसर प्राप्त हुआ। उनका हिंदी संस्कृत और अंग्रेजी पर समान अधिकार था। कभी कभी इनके पिता जी काव्य पाठ करने जाते तो इन्हें भी साथ लेकर जाते थे। पिता के इस उपलब्धि को देखकर इनके अंदर भी एक महान कवि एवं वक्ता बनने की उत्सुकता जन्म लेने लगी। इस प्रकार से मंच तक आते जाते रहने से इन्हें मां सरस्वती की असीम अनुकम्पा भी प्राप्त हो गई। जिसके परिणामस्वरूप इन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया।
भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के साथ 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन आरएसएस की स्थापना की गई थी। अटल जी बारह वर्ष के ही थे, कि स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए। इनके पिता अक्सर ग्वालियर में अपने मित्र भूपेंद्र शास्त्री जी से मिलने आर्य समाज मंदिर जाया करते थे। तभी से अटल जी के जीवन में संघ का ऐसा प्रभाव हुआ कि वे संघ से हमेशा के लिए जुड़ गए। वहीं बाद में इनकी मुलाकात भालचंद्र खानवलकर जी से हुई। तब ये संघ के नियमित कार्यक्रमों में भी भाग लेने लगें। अब अटल जी का संघ से गहरा लगाव हो गया। यहीं पर इनकी मुलाकात आर्यसमाजी श्री नारायण प्रसाद भार्गव चटर्जी से भी हुई। इस प्रकार से इनका जनसंपर्क धिरे धिरे बढ़ता गया और संघ के कामों में मन भी लगने लगा। संघ के राष्ट्र प्रथम की नितियों ने अटल जी को बहुत प्रभावित किया। चूंकि संघ के कामों में जाने-आने से इनके पिता जी नाराज़ भी होते थे। संघ के प्रति सख़्ती का कारण पिता जी की नौकरी थी। क्योंकि वे सरकारी नौकरी में एक प्रतिष्ठित पद पर तैनात थे। वे नहीं चाहते थे कि उनका बेटा सरकारी नीतियों के विरुद्ध कोई कदम उठाए। इसलिए वे संघ के शाखा में जाने से मना करते थे। बाद में इनके बड़े भाई ने भी संघ के उद्देश्यों से प्रभावित होकर स्वयं सेवक संघ की सदस्यता ग्रहण कर ली और उनके कामों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगें।
अटल जी कहते है कि – मुझे स्कूली पढ़ाई के दौरान से ही राष्ट्रीय कवियों की रचनाएं पढ़ने का बेहद शौक था। इसी का प्रभाव था कि मेरे भीतर की क्रांति जाग उठी। बंकिमचंद्र चटर्जी, रामधारी सिंह दिनकर, श्याम नारायण पाण्डेय, पंडित सोहनलाल द्विवेदी शिवमंगल सिंह सुमन, प्रेमचन्द्र, मैथिली शरण गुप्त, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध, राहुल सांकृत्यायन , हरवंश राय बच्चन आदि की रचनाएं क्रांति से ओतप्रोत हुआ करती थी ये लोग समाजिक और राजनीतिक विसंगतियों पर अपनी लेखनी के माध्यम से समाजिक बुराईयों को दूर करने के लिए प्रेरित करते थे।

2———————-*—————-*****————–

अटल जी की माध्यमिक तक की शिक्षा दीक्षा गोरखी विद्यालय से हुई थी। बाद में इनके पिता जी ने इनका नाम विक्टोरिया कालेजिएट स्कूल में लिखा दिया, जिसका नाम बदलकर बाद में हरिदर्शन उच्चतर विद्यालय कर दिया गया। अटल जी कक्षा नौवीं के छात्र थे, तभी एक कविता लिखी थी। ताजमहल! यह अपने आप में उत्कृष्ट रचना थी,क्योंकि इस कविता को लिखने का उनका अपना नजरिया ही अलग था। जिसे लोग प्रेम का प्रतीक मानते हैं, उसे अटल जी ने हिन्दू कारीगरों के रक्त पर खड़ा महल बताया। जिसे शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज के याद में बनवाया था। इस कविता का पत्र पत्रिकाओं में कई बार प्रकाशन भी हुआ—————–
‘यह ताजमहल, यह ताजमहल
यमुना की रोती धार विकल
कल कल चल चल
जब रोया हिंदुस्तान सकल
तब बन पाया ताजमहल
यह ताजमहल, यह ताजमहल..!!’

अटल जी का हिंदी भाषा पर पकड़ ऐसी थी कि वे अपने भाषण से लोगों को बेहद प्रभावित करते थे। विक्टोरिया कालेजिएट स्कूल से हाईस्कूल और इंटरमीडिएट पास करने के बाद विक्टोरिया कालेज में ही बीए में दाखिला ले लिया। बाद में इसका भी नाम बदलकर लक्ष्मीबाई महाविद्यालय कर दिया गया। अटल जी स्नातक हिंदी, संस्कृत, और अंग्रेजी तीनों विषयों से किये। उन दिनों स्नातक में तीन साहित्यिक विषय लेकर पढ़ने की सुविधा केवल आगरा विश्वविद्यालय में ही हुआ करता था। तब विक्टोरिया कालेजिएट विद्यालय आगरा महाविद्यालय से संबद्ध था। एक बार की वाकिया है अटल जी कहते है कि– जब मेरा स्नातक पहला वर्ष था, उसी वर्ष मुझे डिबेट सेक्रेटरी चुन लिया गया। मैं विभिन्न विषयों पर वाद- विवाद हेतु विद्यार्थीयों को तैयार करता था और आयोजकों में अपना सहयोग भी देता था। एक दिन मेरे कालेज के प्रधानाचार्य ने मुझे अपने कक्ष में बुलाया और बताया कि इलाहाबाद में राष्ट्रीय स्तर पर एक वाद-विवाद प्रतियोगिता हो रही है। मैं चाहता हूं कि हमारे कालेज की तरफ से तुम जाओ वहां। मैंने क्षण भर सोचा फिर स्वीकृति दे दी उस समय हमारे प्राचार्य एफ जी पियर्स थे, जो प्रतिभावान छात्रों को अपनी प्रतिभा निखारने का सुअवसर प्रदान करते थे। तय तिथि पर मैं और रघुनाथ सिंह इलाहाबाद के लिए चल दिए। हम ट्रेन से जा रहे थे एक तो दूर का सफर, दूसरे ट्रेन बहुत धीरे धीरे चल रही थी। ट्रेन में बहुत भीड़ होने की वजह से हमारे कपड़े भी गन्दे हो गये थे। फिर भी हम किसी तरह इलाहाबाद पहुंच तो गए। पर देर हो चुकी थी! सारे प्रतिभागी अपने-अपने विचार रख चुके थे। निर्णायक मंडल के सदस्य भी अपना निर्णय तैयार करने में लगे थे। सभी प्रतिभागी मंच पर बैठे, अपनी अपनी पक्ष में सांसें रोके निर्णय सुनाये जाने का प्रतिक्षा कर रहे थे। जज भी आपस में बातें करके निर्णय ले रहे थे। उसी में हिंदी के मूर्धन्य कवि डॉ हरिवंशराय बच्चन जी भी उपस्थित थे। मैं उनका मधुशाला अनेकों बार पढ़ कर तक चुका। आज उन्हीं के सामने बोलने का महत्वपूर्ण मौका गंवाने ही वाला था। मैं निराश हो चुका था। मैंने संचालक महोदय से कई बार अनुरोध किया। बड़ी मुश्किल से उन्होंने मुझे मंच पर बुलाने का निर्णय लिया इस शर्त पर कि हम निर्णायक मंडल के सामने देर होने के कारणों से उन्हें अवगत कराएंगे। यदि अनुमति मिल जाती है तो क्षमा याचना के बाद अपना विचार रख सकते हैं। मैंने ऐसा ही किया आत्मविश्वास के साथ मंच पर पहुंच गया और बोलना शुरू किया, सर प्रथम—–
“अध्यक्ष महोदय! मैं क्षमा प्रार्थी हूं, कि मैं समय से उपस्थित नहीं हो सका, क्योंकि मेरी ट्रेन बिलंब से पहुंची, इसलिए देर हुई आने में।
सभी शांति पूर्ण मेरी बातों को सुनने लगे। आगे मैंने कहा मेरी आप सभी से विनम्र निवेदन है, कि मुझे विचार रखने का अवसर प्रदान किया जाये। यदि ऐसा होगा तो मैं सदैव आपका कृतज्ञ रहूंगा।
यह एक अद्भुत संयोग ही था। निर्णायक मंडल ने आपस में बात की और हमें आपसी सहमति से अपनी बात रखने का अवसर प्रदान कर दिया। फिर मैंने धाराप्रवाह बोलना शुरू कर दिया। सभी श्रोता, निर्णायक मंडल दल मंत्र मुग्ध होकर मेरा भाषण सुनने लगे। जैसे ही मैंने अपनी बात समाप्त की, पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। मुझे तालियों की गड़गड़ाहट से ही पता चल गया था कि परिणाम मेरे ही पक्ष में आएगा। मैं चुप चाप जाकर यथा स्थान बैठ गया। जब परिणाम घोषित हुआ तो मेरा ही नाम प्रथम पुरस्कार के लिए नामित (प्रस्तावित) किया गया और मुझे पहला पुरस्कार मिला।
अपने कॉलेज के दिनों में अधिकांश छात्र इनके संपर्क में रहते थे। क्योंकि अपने सहपाठियों के बीच में मुखर रहने की वजह से सब इन्हें अपना नेता मान चुके थे। सहपाठियों के बहुत कहने के बाद इन्होंने छात्र संघ चुनाव भी लड़ा और नतीजतन जीत भी हासिल की। अब छात्रों के बीच में उनकी भूमिका और बढ़ गई थी। छात्रों के समस्याओं को सुनने और उसके निदान के लिए पूरा प्रयास करते थे। एक नेता के सारे गुण इनके अंदर पहले से ही विद्यमान थे। प्राशासनिक कार्यों का भी इन्हें अच्छी समझ थी। इसी बीच संघ के कामों में भी इनकी जिम्मेदारियां बढ़ने लगी, मानो संघ तो आत्मा ही बन चुका था।

3———————————————————

अटल जी के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना, जब स्वतंत्रता के लिए आंदोलन छिड़ा हुआ (चरम)था। उस समय उनके भीतर भी स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने की प्रबल इच्छा जागृत हुई। क्योंकि संघ से जुड़ने के बाद देश प्रेम और आजादी के अलावा उनके पास कोई दूसरा विषय ही नहीं था। उन्हें सिखाया जाता था कि एक नागरिक का एक देश के प्रति कर्तव्य क्या होना चाहिए। हमें आपस में मिलजुल कर यह लड़ाई लड़नी होगी। यह किसी जाति या मजहब की लड़ाई नहीं है। यह पूरे देश की लड़ाई है, हमें गर्व होना चाहिए कि हम देश के लिए लड़ रहे हैं। हम भारतीय हैं।
यह वह दौर था जब द्वितीय विश्व युद्ध छीड़ा हुआ था। जब 27 जुलाई 1942 को ब्रिटिश सरकार ने लंदन से घोषणा की, कि भारतीय ब्रिटिश फौज को भी इस युद्ध में शामिल किया जाएगा। ब्रिटिश सरकार के इस फैसले से भारतीय नेता बहुत नाराज़ हुए और आंदोलन कर दिये। महात्मा गांधी के अंग्रेजों “भारत छोड़ो” का नारा बुलंद करते ही पूरे देश में आजादी की भूख और बढ़ गई। 8 अगस्त 1942 को मुंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया गया। प्रस्ताव पारित होने के बाद महात्मा गांधी ने 70 मिनट तक जोशिला भाषण दिया। उन्होंने ने स्पष्ट कर दिया कि हम स्वतंत्रता के लिए और अधिक इंतजार नहीं कर सकते। यह संघर्ष करो या मरो का है। ब्रिटिश सरकार को इस बात का आभास हो चुका था। इसलिए अनेक बड़े नेताओं की गिरफ्तारियां शुरू हो गई थी 9 अगस्त को गांधी जी समेत अनेक बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया। अपने नेताओं के गिरफ्तारी से जनता आक्रोशीत हो उठी और जनसंपर्क जन आंदोलन में परिवर्तित हो गया। सभी शीर्ष नेताओं को बंद होने की वजह से कोई भी नेता भीड़ को नियंत्रित करने वाला नहीं था। अनियंत्रित जनता ने गुस्से में हिंसा एवं विरोध का सहारा ले लिया। सरकारी भवनों को तोड़ा फोड़ा जाने लगा तथा जलाएं जाने लगे। अनेकों हड़ताल एवं प्रदर्शन किए जाने लगे। पोस्ट आफिस लूट लिये गये टेलीफोन के तार काट दिए गए। रेल की पटरियों को नुक़सान पहुंचाया गया। समूचे भारत में यह आंदोलन तेजी से फ़ैल गया। अंग्रेजों के विरोध में नारे लगने लगे, गिरफ्तार नेताओं की रिहाई की मांग होने लगी। इस आंदोलन में छात्रों, मजदूरों व किसानों आदि ने चढ़ बढ़ कर भाग लिया। देश के हर कोने में इस आंदोलन का प्रभाव दिखने लगा । इसी बीच जयप्रकाश नारायण हज़ारी बाग जेल से फरार हो गए। उन्होंने आजाद दस्तावेज नामक क्रांतिकारी संगठन गठन किया और सशस्त्र आंदोलन की तैयारी में लग गए। सभी शिक्षण संस्थाएं बंद कर दी गई। ऐसी स्थिति में ब्रिटिश सरकार की नींद उड़ गई, हालांकि ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन को कुचलने का भरपूर प्रयास किया। पूरे देश को छावनी में तब्दील कर दिया। निहत्थों पर गोलियां चलवाई गईं। भोली-भाली जनता पर अत्याचार किए गए। उनपर उल्टा लटका कर कोड़े बरसाए गए। बच्चों और महिलाओं को भी प्रताड़ित किए गए, ताकि जनता को आतंकित कर भय पैदा किया जा सकें। गांवों पर सामुहिक जुर्माने लगाए जाने लगे। इस आंदोलन का सबसे मार्मिक घटना पटना सचिवालय पर झंडा फहराने के अभियोग में सात छात्र गोली के शिकार हुए। इस प्रकार ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियां अपने चरम पर पहुंच गई थी। यह आंदोलन अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ था, इस आंदोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी स्वयं कर रहे थे। यह आंदोलन अहिंसक जन संघर्ष माना गया था। इस आंदोलन में महात्मा गांधी ने दृढ़, लेकिन निष्क्रिय प्रतिरोध का आह्वान किया था। इस आंदोलन को अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है।
महात्मा गांधी के अंग्रेजों भारत छोड़ों आंदोलन के बाद देश का कोई भी भू-भाग अप्रभावी नहीं रह सका था। अनेक प्रदर्शन शुरू हो गये थे। विदेशी कपड़ों और सामानों को जलाएं जाने लगे। कानून का बहिष्कार किया जाने लगा। इस स्वतंत्रता आन्दोलन का प्रभाव हमारे उपर भी पड़ना स्वाभाविक था। अतः मैं और मेरे भाई आंदोलन में कूद पड़े (आंदोलन में शामिल हो गए) यह बात सबके कानों तक तेजी से फ़ैल गई। यह देखते हुए एक दिन शहर के कोतवाल हमारे पिताजी के पास आए और बोले मास्टर साहब आपको पता है, कि आपका सुपुत्र आंदोलन में भाग ले रहे हैं। आप एक सरकारी नौकरीपेशा व्यक्ति हैं। ग्वालियर में आपका बड़ा सम्मान है। इसलिए मैं खुद आपके पास चला आया हूं, ताकि आपको मैं कुछ अनहोनी होने से पहले सावधान कर सकूं। यह सब सरकार के नीतियों के विरुद्ध (खिलाफ )है। इसके लिए उन्हें जेल तो हो ही सकती है। आपके नौकरी पर आंच आ सकती है। इसलिए आप उन्हें समझा दीजिए आपके लिए अच्छा होगा। पिता जी कोतवाल के इस बात को सुनकर घबरा गये, उन्होंने ने हम सबको बुलाया और समझाने लगे। उन्हें यह बात अच्छी तरह से पता था कि सबको डरा धमकाकर रोका जा सकता हैं। पर हमें रोक पाना थोड़ा कठीन था, क्योंकि भाई बहनों में मैं सबसे ज्यादा शरारती था।
पिता जी ने हमें और प्रेम भैया को ग्वालियर से बटेश्वर भेज दिया। यह जानकर कि वहां अभी स्वतंत्रता की कोई चिनगारी जन्म नहीं ली होगी। बटेश्वर एक धार्मिक स्थल था। जहां लोग शिव आराधना (उपासना) में ज्यादा विश्वास रखते थे। लेकिन अब समय बदल चुका था। हम गांव के लड़के मिलकर आजादी के लिए आवाज उठाने लगे। क्योंकि जब समूचा देश लड़ रहा तो हम क्यों बैठे रहे। हम और गांव के लड़के आपस में बात करने लगे धिरे धिरे यह बात चिंगारी की तरह से फ़ैल गई। धिरे धिरे लोगों की भीड़ बढ़ती गई। मेरे एक भाषण पर नौजवानों से लेकर बुजुर्गों के नसों में जोश भर दिया। सैंकड़ों की संख्या में लोग जुट गए। अंग्रेज भारत छोड़ो के नारे लगने लगे। इस लड़ाई में हर कोई जान की आहुति देने के लिए व्याकुल हो उठा। इस बात की भनक जब अंग्रेजी हुकूमत को पड़ी तो पूरा बटेश्वर गांव पुलिस छावनियों में तब्दील हो गई और गिरफ्तारियां शुरू हो गई। जो भी मिला, उसे जेल में डाल दिया गया। उसपर मुकदमे चलाए जाने लगे। मुझे और भैया को भी आगरा जेल भेज दिया गया। जब पिता जी को इस बात का पता चला वो सीधे आगरा आ गये। जिस डर की वजह से मैं तुम दोनों को यहां भेजा था तुमने उसे सच कर दिया। पिता जी बहुत गुस्से में थे, जब जेल में मिलने के लिए आए थे।
हम उनके गुस्से को समझ सकते हैं क्योंकि एक पिता का ग़ुस्सा बच्चों के लिए जायज़ है। पिताजी हमें जमानत दिलाने के प्रयास में लग गए। उन्होंने हर संभव प्रयास किया। पुलिस भी पुंछ ताछ में लगी रही। सबके बयान लिए गए। सभी पर कानूनी कार्रवाईयां की गई। जो लोग भीड़ का हिस्सा थे, उन्हें छोड़ दिया गया।लेकिन जो लोग तोड़-फोड़ आगजनी में शामिल थे, उन्हें कठोर सजा दी गई। मुझे याद है कितने सोर्स और पैरवी के बाद हम लोगों का ज़मानत हुआ। घर आकर बहुत डांट सुननी पड़ी और मां का तो रो रोकर बुरा हाल हो गया था। उन दिनों मैं बीए का छात्र था । माता पिता और दादा जी ने बहुत समझाया था। लेकिन मैं क्यों मानता मेरे भीतर तो देश प्रेम की भावना जाग उठी थी।
विश्व युद्ध के कारण सभी जगह अशांति फैली हुई थी। खाने पीने की वस्तुओं की आपूर्ति बाधित होने के साथ साथ यातायात के साधन रेलगाड़ी, बस तथा समाचार पत्र आदि प्रभावित था। हम छात्रों को समय से बिजली नहीं मिलती थी लालटेन ही एक सहारा थी पर मिट्टी का तेल न मिल पाना भी एक विकट समस्या बन चुका था। हम गुलाम भारत के नागरिक थे। इसलिए यह युद्ध हमें जबरन थोप दिया गया था। बड़ी संख्या में जवान फौज में भर्ती किए जाने लगे। यह सोचकर बड़ा दुःख होता था कि हमारे भारतीय जवान ब्रिटिश फौज के इशारे पर अपनी जान की बाज़ी लगा रहे हैं। इधर आजादी की मांग निरंतर बुलंद होती जा रही थी। हमारे क्रांतिकारी ब्रिटिश सरकार के नाक में दम कर रखें थे। विद्रोह बढ़ता जा रहा था। जेलें भरी जा रही थी। आम जनजीवन अस्त-व्यस्त था। जनता भी अपने अधिकारों को लेकर सचेत हो गई थी। सब तरफ अशांति और भय का माहौल बना हुआ था।
मुझे लगता है कि उस समय इतना तेज विद्रोह नहीं हुआ होता, तो शायद हमारा देश अंग्रेजों से मुक्त नहीं होता। यह एक संयोग ही था एक तरफ विश्व युद्ध छिड़ा हुआ था तो दूसरी तरफ आजादी की मांग हो रही थी। अंग्रेज इसी में उलझ कर रह गए, इसलिए द्वितीय विश्व युद्ध ने भारत के आजादी का राह प्रशस्त किया अर्थात हमारा काम कुछ आसान कर दिया। भारत को आजाद कराने में द्वितीय विश्व युद्ध का एक महत्वपूर्ण भूमिका रही।

4—————————————————
छात्र नेता होने के नाते मैं नित्य नई नई चुनौतियों से घिरा होता था। हमें हर समस्याओं से अवगत कराया जाता था और यह उम्मीद की जाती थी कि मैं इसका समाधान अवश्य निकालूंगा। छात्र संघ महासचिव होना एक चुनौती भरा पद था। अतः अपनी कुछ नैतिक जिम्मेदारियां होती थी और सही मायने में ऐसा ही करता था। मैं अपने मूल कर्तव्यों से कभी समझौता नहीं करता था, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हो। उसका समाधान निकालने का हर संभव प्रयास करता था। छात्रों के समस्याओं को सुनना, उससे अधिकारियों को अवगत कराना और उसे लागू कराना भी यही मेरा कर्तव्य बन चुका था। कभी पुस्तकालय सम्बंधित काम लेकर, कभी केरासन का तेल तो कभी प्रशासनिक कामों को लेकर दिन भर बीत जाता था।
स्कूल में कभी कभी बैठकर भिन्न भिन्न विषयों पर चर्चा करते थे। अपने-अपने भविष्य को लेकर हमारी चिंता साफ दिखाई देती थी। कोई अपना व्यवहार संभालने की बात करता तो कोई तो कोई सरकारी नौकरी करने की। मेरा भी एक सपना था कि मैं भी पढ़ लिखकर प्रोफेसर बनूं वो भी इसी विक्टोरिया कालेज में। मेरे दोस्त भी मानते थे कि मैं एक अच्छा प्रोफेसर बन सकता हूं क्योंकि मेरे भीतर भाषण देने और बातों को प्रस्तुत करने की अद्भुत कला थी। हमें आसानी से अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने में सफलता मिल जाती थी। हम सबके आंखों में अपने भविष्य को लेकर सुनहरे सपने पलते थे। यही वह उम्र थी जब हमारे दिलो से प्रेम आकर्षक बनकर टपकता था। शायद इसीलिए कि किशोरावस्था में भावनात्मक लगाव ज्यादा बढ़ जाता है।
समय अपने गति से चल रहा था। इस साल के चुनाव में भी मुझे जीत मिली और मैं पुनः उपाध्यक्ष पद के लिए चुन लिया गया। यह हमारे स्नातक का अंतिम साल था। हर साल की भांति इस साल भी सोशल गैदरिंग आयोजित किया गया। चुनाव खत्म होने के बाद यूनियन के उत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी को आमंत्रित करने पर विचार किया गया सबकी सहमति से काम को आगे बढ़ाया गया। कालेज प्रबंधन ने इस कार्यक्रम की जिम्मेदारी मुझपर छोड़ दी। मैं कार्यक्रम का सकुशल आयोजन करवाने में लग गया। इस कार्यक्रम के लिए छोटी से छोटी बातों का ध्यान रखना मेरे लिए आवश्यक था। इसलिए मैं बहुत ही जिम्मेदारी के साथ कालेज प्रबंधन के साथ मिलकर कार्यक्रम आयोजित करवाने में हाथ बटाया। कार्यक्रम अपनें निर्धारित तिथि पर रखा गया और महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। लिहाज़ा यह कार्यक्रम बहुत ही सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। मैंने उपाध्यक्ष होने के नाते अपना भाषण दिया। जिसकी राहुल सांकृत्यायन जी ने भूरि भूरि प्रशंसा की।
अटल जी अपनी किशोरावस्था से कवि सम्मेलन के मंचों पर जाने लगे थे। कविता पाठ में रुचि होने के नाते किसी न किसी तरह समय निकाल ही लिया करते थे। ग्वालियर और आस-पास के क्षेत्रों में अनेकों साहित्यिक संस्थाएं कार्यरत थी। सहर्ष वे शामिल होते थे और अपने ओजस्वी वाणी से कविता पाठ करते थे। उनके अंदर यह गुण पिता जी से विरासत में मिला था। क्योंकि वे भी अपने समय के ओजस्वी कवि रह चुके थे।
अटल जी स्नातक की परिक्षा फास्ट डिजाइन से पास करने के बाद अपनी आगे की पढ़ाई कानपुर से करना चाहते थे । इसी साल स्वयंसेवक संघ की प्रशिक्षण भी इनका पूरा हो चुका था। उस समय ग्वालियर रियासत के महाराजा सयाजीराव सिंधिया बीए में प्रथम आने वाले छात्रों को 75 रुपए प्रति माह छात्रवृत्ति दिया करते थे। छात्रवृत्ति मिलने के बाद इन्होंने डीएबी कालेज कानपुर में दाखिला लेने का मन बनाया। क्योंकि इनके बड़े भाई साहब यहां से कानून की पढ़ाई कर चुके थे।वहां शाम को कक्षाएं चला करती थी। वे अपने भविष्य को लेकर काफी उत्साहित थे उनकी इच्छा थी कि मैं राजनीति विज्ञान से एम ए में अपनी पढ़ाई शुरु करु साथ ही साथ कानून की शिक्षा भी प्राप्त करु। आखिरकार इन्होंने निश्चय किया मैं अभी नौकरी नहीं करुंगा बल्कि स्नातक और कानून की पढ़ाई साथ साथ करके अपना समय बचाऊंगा।उन दिनों कानपुर के सभी कालेज आगरा विश्वविद्यालय से संबद्ध थे और आगरा विश्वविद्यालय में एम ए और एल एल बी एक साथ करने की अनुमति थी किन्तु सिर्फ एम ए प्रीवियस ही साथ किया जा सकता था फाइनल किसी एक से ही संभव था अतः उन्होंने निश्चय किया कि पहले साल दोनों में प्रवेश ले लेते हैं फिर अंतिम वर्ष देखा जाएगा कि किसे पहले पूरा किया जाए किसे बाद में।
उन दिनों की एक दिलचस्प वाकिया है मेरे पिता जी भी कानून की पढ़ाई करना चाहते थे वे कहते थे कि तुम लोग हैरान मत हो वो पढ़ाई की कोई उम्र तो नहीं होती है जब जिसकी आवश्यकता हो उसे कर लेना चाहिए। अब तक मैं नौकरी करता रहा मगर अब मैं सेवानिवृत्त हो गया हूं तो मैं कर सकता हूं।

Language: Hindi
1 Like · 55 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from राकेश चौरसिया
View all

You may also like these posts

मैं जा रहा हूं उसको अब छोड़कर
मैं जा रहा हूं उसको अब छोड़कर
दीपक बवेजा सरल
समंदर की बांहों में नदियां अपना वजूद खो,
समंदर की बांहों में नदियां अपना वजूद खो,
पं अंजू पांडेय अश्रु
इच्छा शक्ति अगर थोड़ी सी भी हो तो निश्चित
इच्छा शक्ति अगर थोड़ी सी भी हो तो निश्चित
Paras Nath Jha
त्रेता के श्रीराम कहां तुम...
त्रेता के श्रीराम कहां तुम...
मनोज कर्ण
जो श्रम में अव्वल निकलेगा
जो श्रम में अव्वल निकलेगा
Anis Shah
वो आसमां था लेकिन खुद सिर झुकाकर चलता था। करता तो बहुत कुछ था अपने देश के लिए पर मौन रहता था।
वो आसमां था लेकिन खुद सिर झुकाकर चलता था। करता तो बहुत कुछ था अपने देश के लिए पर मौन रहता था।
Rj Anand Prajapati
रौनक़े  कम  नहीं  हैं  चाहत की
रौनक़े कम नहीं हैं चाहत की
Dr fauzia Naseem shad
तुम बन जाना
तुम बन जाना
ललकार भारद्वाज
संवेदनाएं
संवेदनाएं
Dr.Pratibha Prakash
तुम लौट तो आये,
तुम लौट तो आये,
लक्ष्मी सिंह
"इतिहास"
Dr. Kishan tandon kranti
...जागती आँखों से मैं एक ख्वाब देखती हूँ
...जागती आँखों से मैं एक ख्वाब देखती हूँ
shabina. Naaz
तुम्हारा ज़वाब सुनने में कितना भी वक्त लगे,
तुम्हारा ज़वाब सुनने में कितना भी वक्त लगे,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
ज़िंदगी के मर्म
ज़िंदगी के मर्म
Shyam Sundar Subramanian
दो दिन की जिंदगानी रे बन्दे
दो दिन की जिंदगानी रे बन्दे
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
पूतना वध
पूतना वध
Jalaj Dwivedi
ईश्वर से ...
ईश्वर से ...
Sangeeta Beniwal
ये प्यार की है बातें, सुनलों जरा सुनाउँ !
ये प्यार की है बातें, सुनलों जरा सुनाउँ !
DrLakshman Jha Parimal
मदन मोहन मालवीय
मदन मोहन मालवीय
Dr Archana Gupta
- भूतकाल में जिसने मुझे ठुकराया वर्तमान में मेरी देख सफलता दौड़ी दौड़ी आ गई -
- भूतकाल में जिसने मुझे ठुकराया वर्तमान में मेरी देख सफलता दौड़ी दौड़ी आ गई -
bharat gehlot
तलाश ए ज़िन्दगी
तलाश ए ज़िन्दगी
ओनिका सेतिया 'अनु '
दशरथ के ऑंगन में देखो, नाम गूॅंजता राम है (गीत)
दशरथ के ऑंगन में देखो, नाम गूॅंजता राम है (गीत)
Ravi Prakash
राक्षसी कृत्य - दीपक नीलपदम्
राक्षसी कृत्य - दीपक नीलपदम्
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
#मैथिली_हाइकु
#मैथिली_हाइकु
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
हटा लो नजरे तुम
हटा लो नजरे तुम
शेखर सिंह
"दोचार-आठ दिन की छुट्टी पर गांव आए थे ll
पूर्वार्थ
थाली   भोजन  की  लगी, वधू  करे  मनुहार ।
थाली भोजन की लगी, वधू करे मनुहार ।
sushil sarna
देश आपका
देश आपका
Sanjay ' शून्य'
थिक मिथिला के यैह अभिधान,
थिक मिथिला के यैह अभिधान,
उमा झा
ग़ज़ल : रोज़ी रोटी जैसी ये बकवास होगी बाद में
ग़ज़ल : रोज़ी रोटी जैसी ये बकवास होगी बाद में
Nakul Kumar
Loading...