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2 May 2024 · 3 min read

संस्कृतियों का समागम

जो सारे मनोभाव उद्वेलित कर दे, उसे ही हम सब स्मृति कहते हैं।
जो उद्वेलित भाव प्रत्यक्ष दर्शाए, उस प्रक्रम को संस्कृति कहते हैं।
ज्यों सारा ब्रह्माण्ड, विभिन्न आकाशीय पिण्डों का अद्भुत संगम है।
इस प्रकार तो ये दुनिया भी, अनगिनत संस्कृतियों का समागम है।

एक है जीवन, एक है तन-मन, एक इस अंतरात्मा की आवाज़ है।
एक है उड़ान, एक है आसमान, एक पंछियों की बुलंद परवाज़ है।
जो सात सुरों को लयबद्ध करे, संगीत के पास वो मीठी सरगम है।
इस प्रकार तो ये दुनिया भी, अनगिनत संस्कृतियों का समागम है।

भाषा, परंपरा और मान्यता, ये आयाम ही संस्कृति की पहचान हैं।
त्यौहार, नृत्य, गीत-संगीत, ये सब भी देश की आन, बान, शान हैं।
इन सब बातों की समृद्धि, एक समग्र समाज की सच्ची हमदम है।
इस प्रकार तो ये दुनिया भी, अनगिनत संस्कृतियों का समागम है।

पूरब के सेवा-सत्कार को देखो, पश्चिम से ले आना आस्था अर्पण।
उत्तर से असीमित जोश ले आते हैं, दक्षिण से श्रद्धा और समर्पण।
दिशा के बारे में जितना कहें-पढ़ें, हर स्तुति गान पड़ जाता कम है।
इस प्रकार तो ये दुनिया भी, अनगिनत संस्कृतियों का समागम है।

एक देश के प्रांतीय स्तर पे, भाषा, मत, संस्कृति में बदलाव दिखे।
कहीं पूर्व का आकर्षण खींचे, कहीं पश्चिम की ओर खिंचाव दिखे।
जो हर क़दम पर स्वरूप बदले, उस विविधता के संचालक हम हैं।
इस प्रकार तो ये दुनिया भी, अनगिनत संस्कृतियों का समागम है।

उत्तर की इन हवाओं का उत्तर, संस्कृति के संदेश में ढूॅंढना पड़ेगा।
दक्षिण की धमक में छिपा राज़, किसी दैवीय भेष में ढूॅंढना पड़ेगा।
कहीं प्रणाम, कहीं आदाब, कहीं हैलो-हाई और कहीं वड़क्कम है।
इस प्रकार तो ये दुनिया भी, अनगिनत संस्कृतियों का समागम है।

अच्छी बातें ही आत्मसाध करो, केवल इतने से काम चल जायेगा।
जिसकी पिटाई से रिहाई न हुई, वो सदाचार से ही पिघल जायेगा।
आज यही सौहार्द पूर्ण व्यवहार, पूरे जगत में लहरा रहा परचम है।
इस प्रकार तो ये दुनिया भी, अनगिनत संस्कृतियों का समागम है।

जब पूर्व से चलें पश्चिम की ओर, नदियों की धार बदलने लगती है।
जो उत्तर से उतरें दक्षिण में तो, मौसम की बयार बदलने लगती है।
दिशाओं के जैसे विधाओं में भी, परिवर्तन का एक निश्चित क्रम है।
इस प्रकार तो ये दुनिया भी, अनगिनत संस्कृतियों का समागम है।

बोली-भाषा अलग, होती है परिभाषा अलग, हों भिन्न-भिन्न अर्थ।
भाव, चाव, लगाव, बदलाव से, संस्कृति के मूल हो जाते हैं व्यर्थ।
भ्रम रोकने का एक मात्र उपाय, हृदय की भावनाओं का संयम है।
इस प्रकार तो ये दुनिया भी, अनगिनत संस्कृतियों का समागम है।

पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, एकमत से संस्कृति को बचाना होगा।
पीछे छिपने से कुछ नहीं होता, सब रुकावटों से आगे आना होगा।
बिना प्रयास के संस्कृति बचाना, सदियों से पल रहा झूठा वहम है।
इस प्रकार तो ये दुनिया भी, अनगिनत संस्कृतियों का समागम है।

लोक में प्रचलित हर विधा का, समुचित विश्लेषण बहुत ज़रूरी है।
पुरातत्त्व की सीढ़ियों में रखी, धरोहरों का संरक्षण बहुत ज़रूरी है।
संरक्षण, संवर्धन व संचरण ही, संस्कृति की हर चोट का मरहम है।
इस प्रकार तो ये दुनिया भी, अनगिनत संस्कृतियों का समागम है।

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