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18 Mar 2020 · 1 min read

संजय’ अब जुआरी हो चुका है

जेहन से वो भिखारी हो चुका है
अमां माहौल भारी हो चुका है

खिलाफत गाँठने वालों की खातिर
नया फ़रमान जारी हो चुका है

सियासी लब हुए खामोश लेकिन
निगाहों से शिकारी हो चुका है

मैं जीने का तरीका सीखता पर
बहुत सिर पर उधारी हो चुका है

लगा दी दाँव पर ये जिंदगी भी
के ‘संजय’ अब जुआरी हो चुका है

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