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20 Oct 2020 · 3 min read

वो पाँच नम्बर

मोहन और मोहिनी दोनों एक ही स्कूल में साथ- साथ पढ़ते थे । स्कूल सरकारी था, उस दौर में प्राइवेट स्कूल शहरों तक ही सीमित थे । उनका स्कूल कहने को सरकारी था, किन्तु अनुशासन, खेलकूद, पढ़ाई हर एक विधा में आस-पास के विद्यालयों से बहुत आगे था । इस विद्यालय में केवल दो ही शिक्षक थे, जो तीन- तीन कक्षाओं के 150 छात्र- छात्राओं को बहुत ही अच्छे से पढ़ाते थे । बच्चे भी मन लगाकर पढ़ते थे, जो बच्चे नहीं पढ़ते थे या थोड़ी बहुत बदमाशी करते थे उनकी पिटाई बहुत होती थी । मोहन के दो- तीन मित्रों ने केवल पिटने के कारण विद्यालय छोड़ दिया था ।
शुरू – शुरू में मोहन भी बहुत पिटता था । किंतु धीरे- धीरे बुद्धि के द्वार खुलते गए, जिस प्रकार कुम्हार घड़े को पीट-पीट कर एक उन्नत आकर में ढाल देता है , उसी प्रकार यहाँ बच्चों को घड़े के समान ढाला जाता था, जो घड़े चोट नही सह पाते थे, वे फूट जाते थे । अर्थात ऐसे विद्यार्थी विद्यालय छोड़कर घर गृहस्थी के काम में लग जाते थे ।
मोहन और मोहिनी दोनों ही पढ़ने में बहुत अच्छे थे, किन्तु मोहन शरीर से बहुत दुबला पतला था । इसके विपरीत मोहिनी एक दम चुस्त दुरुस्त थी । हर एक गतिविधि में कबड्डी, खो- खो, दौड़, अंताक्षरी, गीत गायन, नाटक सभी में वह अव्वल रहती थी । मोहन का एक ही शोक था, बस पढ़ाई करना । पढ़ने में प्रतिस्पर्धा का भाव हमेशा से रहा है । यहां पर भी मोहन और मोहिनी के बीच इस प्रतिस्पर्धा का बीज रोपण हो चुका था । जो दो- तीन वर्षों में और भी परिपक्व हो गया था । इस विद्यालय के अंतिम वर्ष की त्रैमासिक, अर्धवार्षिक परीक्षा परिणाम में मोहन ही अव्वल रहा, किन्तु वार्षिक परीक्षा परिणाम ठीक इसके विपरीत रहा, जिसमे मोहिनी ने पूरे विद्यालय में टॉप किया था । मोहन का नम्बर तो विद्यालय में चौथा- पांचवा रहा । मोहन का मन परीक्षा परिणाम देखकर बहुत ही रुआँसा हो गया था ।
किन्तु मन में एक गाँठ बांध ली थी । एक इच्छा शक्ति का जन्म हुआ, जिस पर भूख, प्यास, ठंड, गर्म, किसी का भी कोई असर नही होता था । बस एक ही बात मन में थी, कि मोहिनी से ज्यादा अंक लाना । यह विद्यालय छोड़कर दोनों ने शहर के अलग- अलग विद्यालयो में प्रवेश लेकर पढ़ाई जारी रखी । अब दोनों की बात भी नहीं होती थी , किन्तु प्रतिस्पर्धा अब भी थी । यह वर्ष बहुत महत्वपूर्ण था, हाई स्कूल की परीक्षा थी, उस दौर में यह परीक्षा पास करना बड़ा ही मुश्किल था । जब कभी दोनों शहर के किसी कोने या गली में एक – दूसरे से टकरा जाते थे, उस दिन मोहन यह सोचकर कि मोहिनी कितना पढ़ती होगी, वह रात-भर पढ़ता था ।

जितनी मेहनत करता, उतना पाता दाम ।
सोने से नहीं मिलता, जग में सुख आराम ।।

आ गई वो घड़ी जिसका कब से इंतजार था, आज हाई स्कूल का परीक्षा परिणाम घोषित हुआ , मोहन बहुत उत्सुक था,उसकी मेहनत को कसौटी पर उतरना था । अपने से ज्यादा मोहिनी के परिणाम को देखने की उत्सुकता थी । अंततः वह पल आ गए जब परीक्षा परिणाम पता चला कि मोहन ने मोहिनी से पाँच नम्बर अधिक पाए है ,साथ ही पूरे विद्यालय में सबसे अधिक मार्क्स मोहन के ही थे । यह महज़ पाँच नम्बर नहीं थे, उसकी प्रतिस्पर्धा का फल था, जो कड़ी मेहनत लग्न से उसे प्राप्त हुआ था । मोहन बहुत खुश था, किन्तु उसे पता था कि यह अंतिम मंजिल नहीं है, हमे आगे भी प्रतिस्पर्धा जारी रखना है ।

जब हो पाने की ललक, इच्छा शक्ति अपार ।
कौन रोक पाए उसे, मंजिल मिले हजार ।।
—-जेपी लववंशी

Language: Hindi
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