विरह योग
चांँद अपना जिसने छोड़ा इस गगन में।
प्रश्न है उस प्रेमी के मन के अंँगन में।
प्रेम अनैतिक हुआ अवधारणा क्यूंँ?
प्रेम से उच्छल हृदय में साधना क्यूंँ?
प्रश्न है लाखों हृदय में छोड़िए अब।
और उत्तर के दिशा मुख मोड़िए अब।01
वो मिले इक पल मिला दो पल खुशी।
हमने उनको ही कहा तब ज़िंदगी।
ज़िंदगी कहना कहांँ से भूल है।
भूल तो उसको समझना फूल है।
फूल समझा वो तभी इतरा गए।
देवताओं के नज़र में आ गए।02
आइए अब आपको मैं यह दिखाऊंँ!
प्यार के इस पाठ से अवगत कराऊंँ!
प्यार बचपन में हुई पहली दफा।
रास आई थी हमें वो बावफा।
उनको देखा तो हुई गद गद नयन।
फिर नयन ने देख ली उनकी सपन।03
थी सपन में ज्योति रश्मि से भरी।
ज्योति के उस पार थी पावन परी।
उस परी के हाथ में थी इक घड़ी।
उस घड़ी में आ गया मेरा समय।
जैसे मैंने पा लिया उस पर विजय।04
मैंने झट से पूछ ली है नाम क्या?
उसने गुस्से में कहा है काम क्या?
मैंने बोला आपका आशिक़ हूंँ मैं।
आप हो मंजिल परम पाथिक हूं मैं।
साहसा पाया विकट अवसाद था।
नींद तोड़ा मित्र का उन्माद था।05
फिर ये सुनिए क्या हुआ था हादसा?
वर्ग में प्रियतम ने पूछी जब पता!
एक क्षण को यूं लगा मैं मूक हूंँ।
या कि कलयुग में कन्हैया रूप हूंँ।
है मुनासिब तो नहीं लेटर लिखो।
मैंने झट से बोल दी नंबर लिखो।06
और फिर रातों में भी क्या बात थी!
फोन पर जाना मेरे ही साथ थी।
चार वर्षो तक रहा यह सिलसिला।
एक उससे ज़िंदगी को स्वर मिला।
फिर पता क्या ज़िंदगी में यत्न है।
मां सही कहती है बेटा रत्न है।07
भोर में पापा ने पूछा फोन पर।
कबतलक आओगे बेटा अपने घर।
आज घर में हर्ष का वातावरण है।
आज बेटा कर लिया अभीयंत्रण है।
आज हॉस्टल में लगा उन्माद है।
प्रेम यारी सब लगा अवसाद है।08
अश्क आंँखों से छलकता जा रहा ।
कंठ लारों को निगलता जा रहा।
है खुशी चेहरों पे अदभुत रोशनी है।
आज तो बचपन के आगे ज़िंदगी है।
खूब रोया रो लिया मिलकर गले।
और बचपन यार को छोड़े चले।09
फिर अचानक आंँसुओं ने बांँध तोड़ा।
सामने देखा तो प्रियतम रो रही थी।
मैंने जिसके अश़्क को मोती कहा था।
यकबयक वो मोतियों को खो रही थी।
उसने बोली आप भी घर जा रहे हैं।
हमने बोलना जिंदगी मर जा रहे हैं।10
है विसंगत वेदनाओंँ का समन्वय।
है यही यौवन का सुरभित सा उदय।
आज जिम्मेदारियांँ सर आएगी।
हौंशला रख तू मेरे घर आएगी।
सात जन्मों का वचन मैं दे रहा हूंँ।
आज तुमको आत्मा में ले रहा हूंँ।11
वेदनाओंँ को समेटा घर गया।
सबका मन खुशियों से मानो भर गया।
हर्ष से विभोर हैं मेरे पिताजी।
तो बता बेटा कि सब मंगल तो है।
आराम कर लो कुछ समय की बात है।
और जिम्मेदारियांँ भी कल को है।12
था हँसी चेहरे पे दिल में वेदना भी।
प्रेयसी की याद अब आने लगी थी।
रात को चादर भिगोना आंँसुओ से
और दिन को स्वप्न दहकाने लगी थी।
फिर अचानक प्रेयसी का फोन आया।
हमने दिल का दर्द सब उसको सुनाया।13
आज क्या है क्या पता कुछ हादसा सा।
रो रही हो क्योंँ प्रिय यूंँ बेतहासा।
कुछ तो बोलो बोल दो आख़िर हुआ क्या?
हे प्रिय मुख खोल दो आख़िर हुआ क्या?
उसने रोकर ये कहा सुन लीजिए।
आप दूजा चांद अब चुन लीजिए।14
मैंने बोला तू बड़ी है बावली सी।
लेल है तू लेल की सरदारनी सी।
क्या से क्या तू आज बकते जा रही है?
आज मेरी मौत रटते जा रही है।
फिर से रोकर वो कही सुन लीजिए।
आप दूजा ख़्वाब अब बुन लीजिए। 15
मैंने अब तक था नकारा फिर अचानक।
पूछ डाला क्या हुआ आख़िर अचानक।
वो कही आए थे कल सब देखने।
मेरी शादी हो गई है तय अचानक।
आज मैं बेबस हुई हूंँ प्यार पर।
जिम्मेदारी ने किया है जय अचानक।16
मेरी आंँखें आंँसुओं से भर गए।
और हम तो ज़िंदगी में मर गए।
रोते रोते फोन छूटा हाथ से।
और अचानक स्वेद छूटा माथ से।
था मुझे गुस्सा समझ पाया नहीं।
फोन फिर वो कि उठाया नहीं।17
और फिर कविता पे कविता लिख रहा था।
बेवफा कह जानेमन पर चीख रहा था।
प्रश्न खुद से था मुनासिब पर किया कब?
प्रेयसी को प्रीत से उत्तर दिया कब?
मैं न समझूँ गर उसे तो कौन समझेगा?
दूसरा तो मौन को बस मौन समझेगा!18
मन में पीड़ा को समेटे मैं हंँसा फिर!
प्रेयसी को दी बधाई साहसा फिर।
उसने जैसी ही सुनी यह शब्द मुख से।
होंठ कांँपे और मन रोया था दुःख से।
मैंने समझाया कि तू तो राधिका है।
प्रेम में प्रणय से ऊपर साधिका है।19
याद है हमने जो झूला साथ झूले।
हाथ में दे हाथ घूमे थे जो मेले।
प्रीत सातों जन्म का अवधारणा है।
और प्रणय को समझ लो ताड़ना है।
प्रेम यौवन का नशा केवल नहीं है।
प्रेम के बिन आंँख को भी जल नहीं है।20
प्रेम न हो तो गगन भी रह न पाए।
प्रेम न हो तो बसंती बह न पाए।
प्रेम से धरती ने पाई उर्वरा सुख।
प्रेम से ऋषियों ने देखा ब्रह्म सम्मुख।
मैं विकट अक्रांता का काल है यह जानता हूंँ।
वेदनाओँ से भरा पाताल है यह जानता हूंँ।21
है ज़रूरी प्रेम कर अब पूर्णता को।
साध लो अब वेदनाएंँ घूर्णता को।
तुम मेरी अर्द्धांगिनी हो स्वर्ग में।
और हम फेंके गए हैं नर्क में।
यह परीक्षा का समय है प्रेम में।
पार कर लो तो विजय है प्रेम में।22
इस जनम ईश्वर भले जो साध दें।
प्रणय सूत्र में और के संग बांँध दें।
जन्म है यह प्रेम में देने परीक्षा।
जन्म है युग युग से जिसकी थी प्रतिक्षा।
अब चला हूंँ प्रीत को मैं सार देने।
फिर मिलेंगे हम तुम्हें संसार देने।23
प्रीत की योगन तुम्हें अब मैं कहूंँगा।
मैं तुम्हारे दिल में युग युग रहूंँगा।
मेरे दिल में है तुम्हारी एक दुनियांँ
एक पल के प्यार में सौ जन्म खुशियांँ।
मैं किया स्वीकार तुम स्वीकार कर लो।
छोड़ता हूंँ चांँद पर अधिकार कर लो।24
दीपक झा रुद्रा