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22 Feb 2024 · 1 min read

कट ले भव जल पाप

उठ मन कट ले,तू भव-जल पाप।
जन्म-जन्म से सोता आया,जाग सके अब जाग ।।

कितनी योनि झेली तूने,खाने ओर सोने मे,
समझ न आई उस दाता की,पाप कर्म बोने मे,
मानव चोला दर मुक्ति का,तुझे देकर किया सनाथ।।

उठ मन कट ले,तू भव-जल पाप।
जन्म-जन्म से सोता आया,जाग सके अब जाग ।।

संगत करते सतगुरु बाबा,समझ पड़ेगी भाषा,
पथ दिखाया जो सतगुरु ने,करले अमल तू दासा,
कष्ट-विघन् मार्ग मे जो,सब कटे सहज मिल आप।

उठ मन कट ले,तू भव-जल पाप।
जन्म -जन्म से सोता आया,जाग सके अब जाग ।।

भज सिमरन पाये तू उनको,जीवन सफल हो तेरा,
जन्म-मरण की फांसी कट जा,लग सतगुरु संग डेरा,
आप तरे कुल को भी तारे,मुक्त होये चिर शाप।

उठ मन कट ले,तू भव-जल पाप ।
जन्म-जन्म से सोता आया,जाग सके अब जाग ।।

संतोषी बन तु कट ले,अपने लख चौरासी ताप।
उठ मन कट ले,तू भव-जल पाप।
जन्म-जन्म से सोता आया,जाग सके अब जाग ।

Language: Hindi
42 Views
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