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22 Dec 2023 · 1 min read

* भोर समय की *

** गीतिका **
~~
जब प्राची में रक्तिम आभा, ऊषा ने है बिखरायी।
भोर समय की शुभ वेला में, सुन्दर कलियां मुस्कायी।

खिल जाती जब धूप सहज ही, धुंध सिमटने लगती है।
खिली हुई हर ओर दिशाएं, देती सुन्दर दिखलायी।

सबके मन भाती हरियाली, नदियों की कल-कल छल छल।
जिसने भी है इसे निहारा, उस ने संतुष्टी पायी।

नीले नभ की ओर उड़ चले, निकल नीड़ से पंछी जब।
देख रहे हैं ऊंचाई से, धुंध अभी तक है छायी।

ढलक रही है बूंद ओस की, धीरे धीरे पिघल रही।
कलियां खोल रही है आंखें, तितली भी है अलसायी।

सर्द हवाओं का मौसम है, पत्ते हैं पीले पीले।
कभी कभी लगता यह मौसम, हमें बहुत ही हरजायी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २२/१२/२०२३

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