” वाह बनारस…वाह वाह बनारस “
साधुओं के ” ऊँ ” से रमता है बनारस
दशांगों के धुएं से महकता है बनारस
मंदिरों की घंटियों से गूँजता है बनारस
हर हर महादेव से उठता है बनारस
गंगा के घाटों पर झूमता है बनारस
घाटों की सीढ़ियों से उतरता है बनारस
सकरी तंग गलियों में चहकता है बनारस
पानों के बीड़ों में गमकता है बनारस
कचौड़ी के कड़ाहों में छनता है बनारस
लस्सी के पुरवे से छलकता है बनारस
जलेबी के सीरे से टपकता है बनारस
भाँगों की बूटियो में घुटता है बनारस
ठंडाई के गिलासों में चढ़ता है बनारस
अपना अल्हड़पन दिखाता है बनारस
लंगड़े को भी राजा बनाता है बनारस
बुनकरों के लूमों से निकलता है बनारस
बनारसी साड़ियों से सजता है बनारस
कला को नये आयाम दिलाता है बनारस
संस्कृति को गंगा – जमुनी बनाता है बनारस
मस्तों को और मस्त कराता है बनारस
खुश होकर साधुमय हो जाता है बनारस
शहनाई की गूँज से मगनता है बनारस
पहलवानों को अखाड़ों में छकाता है बनारस
वरूणा से अस्सी में समाता है बनारस
गंगा में और भी गहराता है बनारस
कण – कण से शिवलिंग उगाता है बनारस
पूरी नगरी को शिवमय बनाता है बनारस
बड़े अंदाज़ से अपनी ठसक दिखलाता है बनारस
सबसे ” हर – हर महादेव ” कहलाता है बनारस
जलती चिता को ठंडक दिलाता है बनारस
हर एक को मुक्ति दिलाता है बनारस
मिट्टी को भी चंदन बनाता है बनारस
सीधे सबको स्वर्ग ले जाता है बनारस
ये मेरा बनारस ये तुम्हारा बनारस
दुनियां से अलग है हमारा बनारस
वाह बनारस…वाह वाह बनारस !!!
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 02 – 04 – 2013 )