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22 May 2024 · 3 min read

लोकतांत्रिक मूल्य एवं संवैधानिक अधिकार

सामयिक परिपेक्ष्य में बदलते लोकतांत्रिक मूल्य एवं जनता के संवैधानिक अधिकारों के हनन का प्रत्यक्ष प्रमाण दृष्टिगत होता है।

लोकतंत्र को समाज का आदर्श व्यवस्था माना गया है, जहाँ जनता की भागीदारी और उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सर्वोपरि होती है। किंतु, आधुनिक समय में बदलते लोकतांत्रिक मूल्य और संवैधानिक अधिकारों का हनन चिंता का विषय बन गया है।

इन दोनों पहलुओं की विवेचना हम समकालीन परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।

लोकतांत्रिक मूल्य – एक बदलता परिदृश्य

1. राजनीतिक अस्थिरता और ध्रुवीकरण:

बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता और ध्रुवीकरण ने लोकतांत्रिक मूल्यों को चुनौती दी है। विभिन्न दलों के बीच मतभेद और टकराव ने शासन प्रणाली को कमजोर किया है, जिससे जनता का विश्वास कम हुआ है।

2. सूचना का विकृतिपूर्ण प्रबंधन :

सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफार्म्स ने सूचना के प्रवाह को अत्यधिक तेज कर दिया है, लेकिन साथ ही विकृतिपूर्ण और फर्जी सूचनाओं का प्रसार भी बढ़ा है। इससे जनता के विचारों में भ्रम पैदा हुआ है और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप हुआ है।

3. जनता की भागीदारी में कमी :

आर्थिक और सामाजिक असमानता ने भी लोकतांत्रिक मूल्यों पर असर डाला है। गरीब और कमजोर वर्ग के लोग राजनीतिक प्रक्रियाओं में अपनी भागीदारी से वंचित हो रहे हैं, जिससे लोकतंत्र का असल उद्देश्य अधूरा रह जाता है।

संवैधानिक अधिकारों का हनन

1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश :

हाल के वर्षों में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की घटनाओं में वृद्धि हुई है। सरकार और अन्य संस्थानों द्वारा मीडिया और व्यक्तिगत अभिव्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाना संवैधानिक अधिकारों का हनन है।

2. न्यायिक स्वतंत्रता पर खतरा :

न्यायपालिका की स्वतंत्रता लोकतंत्र का स्तंभ है, लेकिन इसे प्रभावित करने के प्रयास हो रहे हैं। न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप और राजनीतिक दबाव ने न्यायपालिका की स्वायत्तता को चुनौती दी है।

3. निजता का हनन

डिजिटल निगरानी और डेटा सुरक्षा के उल्लंघन से नागरिकों की निजता पर खतरा बढ़ गया है। यह संवैधानिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है, जो नागरिकों की स्वतंत्रता को सीमित करता है।

समाधान और सुझाव

1. राजनीतिक सुधार

राजनीतिक स्थिरता और पारदर्शिता के लिए सुधार आवश्यक हैं। चुनावी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और राजनीतिक दलों के वित्तीय मामलों में सुधार लाना महत्वपूर्ण होगा।

2. सूचना की स्वतंत्रता

सूचना का स्वतंत्र और सत्यापन योग्य होना आवश्यक है। इसके लिए फर्जी समाचारों के खिलाफ सख्त कदम उठाने और मीडिया की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

3. न्यायिक सुधार

न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए न्यायिक सुधार आवश्यक हैं। न्यायिक नियुक्तियों और कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित की जानी चाहिए।

4. निजता की सुरक्षा

डिजिटल अधिकारों और निजता की सुरक्षा के लिए मजबूत कानूनों की आवश्यकता है। नागरिकों की डेटा सुरक्षा और निजता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

5. भ्रष्टाचार पर अंकुश एवं आचार संहिता का
कड़ाई से पालन

देश में फैले भ्रष्टाचार को रोकने के लिये कठोर दंड का प्रावधान एवं भ्रष्टाचार के मामले के त्वरित निपटान हेतु त्वरित न्यायालयों की व्यवस्था , एवं भ्रष्टाचारी राजनेताओं एवं उनसे सांठगांठ में लिप्त शासकीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही , एवं दोषी व्यक्तियों को कठोरतम दण्ड व्यवस्था , शासन व्यवस्था की आचार संहिता के अनुपालन में पारदर्शिता लाने में एक सफल कदम सिद्ध होगा।

अंततोगत्वा , बदलते लोकतांत्रिक मूल्य और संवैधानिक अधिकारों का हनन समकालीन समाज के लिए गंभीर चुनौती है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक है कि हम अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को पुनः सशक्त करें और संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाएँ। केवल तभी हम एक सशक्त और स्थिर लोकतंत्र की स्थापना कर सकेंगे।

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