रोशनी का दरिया
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ये रोशनी का दरिया आ गया कहाँ से,
इन अँधेरी गलियों के ख़यालों में।
ये ओस की बूंदे आई कहाँ से,
इन रुखी चट्टानों के चेहरे पे।
ये मौत का साया क्यूँ मंडरा रहा है
इन मासूम कलियों पे।
क्यों तरसती हैं ये माटी,
अपने ही लाडलों की क़ुरबानी को आज?
ये क्या हो रहा है यहां इस झन्झावात में
इतने सवाल हैं उल्टे-सीधे मगर ज़वाब कहाँ?
यही खोजते- खोजते आज मैं
चली आई यहाँ।
©️ रचना ‘मोहिनी’