रंगत मेरी बनी अभिशाप
रंगत मेरी बनी अभिशाप,
मन की खूबसूरती छिप गई।
पीड़ा की अंधेरी घटाओं ने,
खुशियों की किरणें ढक लीं।
मानों भेद किया हो किसी ने,
रूप पर ही सबकी आँख गई।
सद्गुण की परख न की किसी ने,
दिखावे में ये दुनियां लिपट गई।
बाहरी चमक में उलझ गए सब,
अंदर की खूबी ना पहचानी गई।
समाज की नजरों की जंजीरों में,
असल मेरी पहचान भी खो गई।
– सुमन मीना (अदिति)