योग करना चाहिए
योग एक ऐसी विद्या है, जिससे हमें हमारा सम्पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त होता है। इसके अनुसार स्वस्थ होने का अर्थ है- स्वयं में या अपनी आत्मा में स्थापित होना।
व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक रूप से स्वस्थ होने के साथ ही आत्मिक रूप से भी स्वस्थ होना चाहिए। स्वास्थ प्राप्त करने के लिए हमारे जीवन में योग अत्यंत आवश्यक है। जब व्यक्ति हर प्रकार से स्वस्थ रहता है, तो वह व्यावहारिक जीवन में उन्नति की ओर अग्रसर होता है। योग का सबसे अधिक योगदान मन के नियंत्रण और उसको सुदृढ बनाने के उपायों में है। इसके अभ्यास से संकल्प शक्ति बढ़ती है, जिससे व्यक्ति में आनंद और संतुलन बढ़ना स्वाभविक है
हमारा शरीर ही योग की प्रयोगशाला है। शरीर में मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार ये साधन यंत्र रूप है। अभ्यास, वैराग्य और एकाग्रता यंत्रों के प्रयोग में मुख्यत सहायक है। योग प्रक्रिया एक साधना है। जिससे पूरी तरह से लाभान्वित होने के
लिए, इसके महत्व को ध्यान में रखते हुए यह विश्वास करना चाहिए, कि जिस उद्देश्य की पूर्ति लिए योगाभ्यास किया जा रहा है उसमे निश्चित ही सफलता मिलेगी।
योग पद्धति अपने-आप में पूर्ण एवं समर्थ है। महर्षि पतंजलि ने योग की व्याख्या अनुशासन से शुरू की है, इससे स्पष्ट है कि योग बगैर अनुशासन के सिद्ध नहीं हो सकता। चाहे वो शारीरिक स्वास्थ को प्राप्त करने के लिए हो, मानसिक संतुलन प्राप्त करने के लिए, या आध्यात्मिक उत्थान के लिए हो,
इसके लिए विशेष दिनचर्या अपनानी होगी। वर्तमान में योग अपना स्थान चिकित्सा के रूप में बना रहा है, परन्तु यह मात्र चिकित्सा नहीं अपितु मनुष्य में निहित शक्तियों को जाग्रत करने की पद्धति हैं।
योग प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं का चिकित्सक बनाने की कला है। हमारे भारतीय ऋषि मुनियों द्वारा शताब्दियों के शोधों एवं कठिन तपस्या द्वारा खोजी गई एक वैज्ञानिक जीवन पद्धति है। वर्तमान में आवश्यकता है कि बाल्यकाल से ही कि योग को शिक्षा पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से सम्मिलित करना चाहिए। यह जनसामान्य के नित्य कर्म में भी सम्मिलित होना चाहिए। ऐसा होने से समस्त मानव समाज का स्वास्थ, संतलन एवं अनुशासन आदि के द्वारा उत्थान संभव होगा।
योग के अंगो का अभ्यास करने से अशुद्धियों का विनाश होता है और बुद्धि, विवेक प्रखर होकर चमक उठते हैं।
योग के आठ अंग होते हैं=
1- यम
2- नियम
3- आसन
4- प्राणायाम
5- प्रत्याहार
6- धारणा
7- ध्यान
8- समाधि
यम पांच =
1. अहिंसा (प्राणी मात्र को किसी भी तरह से पीड़ा ना पहुंचना)
2. सत्य(मनुष्य में स्पष्टवादिता का होना, मन, कर्म, वचन से सत्यवादी होना)
3. अस्तेय(चोरी ना करना)
4. ब्रम्हचर्य (कामेच्छा पर नियंत्रण)
5. अपरिग्रह (अनावश्यक चीजो के संग्रह तथा संचय की प्रवृति ना होना) ।
यम के पांचों अंगो का पालन करना योगाभ्यास के पहले चरण की प्राथमिकता है ।
नियम में भी पांच अभ्यास समाहित है=
1. शौच – (सम्पूर्ण शारीरिक एवम् मानसिक शुद्धि या स्वच्छता)
2. संतोष- ( जितना अपने पास है उसी में, प्रसन्न रहने का अभ्यास)
3. तप- ( शरीर एवं मन को कष्ट देना अर्थात इन दोनों को विपरीत परस्थिति सहने के लिए तैयार करना)
4. स्वाध्याय- (स्व एवं अध्याय अर्थात अपना अध्ययन)
5. ईश्वर प्राणिधान- (स्वयं को ईश्वर के लिए समर्पित करना)
आसन=
जिसके द्वारा हम स्थिरता से और सुखपूर्वक बैठ सकें वह आसन कहलाता हैं। सुखपूर्वक बैठने का मतलब आलस्य से कहीं भी या कैसे भी बैठ जाओ ये आसन नहीं कहलाता है) ।
शिव सहिंता के अनुसार जीव की चौरासी लाख योनियों के समान ही चौरासी लाख आसन भी होते हैं। उनमें से चौरासी आसन श्रेष्ठ है और इन चौरासी आसनों में भी बत्तीस आसन अति विशिष्ट और प्रमुख हैं।
हठयोग में विवेचित ये बत्तीस विशिष्ट आसन है
1. सिद्धासन
2. भद्रासन
3. व्रजासन
4. सिंहासन
5. वीरासन
6. मृतासन
7. मत्स्यासन
8. गोरक्ष आसन
9. उत्कटासन
10. मयूरासन
11. कुर्मासन
12. मंडुक आसन
13. वृक्षासन
14. वृषासन
15. मकरासन
16. भुजंगासन
17. पद्मासन
18. मुक्तासन
19. स्वस्तिकासन
20. गोमुखासन
21. धनुरासन
22. गुप्तासन
23. मत्स्येंद्रसन
24. पश्चिमोत्तानासन
25. संकटासन
26. कुक्कुटासन
27. उत्तान कुर्मासन
28. उत्तानमंडुकासन
29. गरुड़ासन
30. शलभासन
31. उष्ट्रासन
32. योगासन
प्राणायाम (जीवन शक्ति या मूलतत्व) । महर्षि पतंजलि के अनुसार प्राणायाम के प्रभाव से मन, शरीर के किसी भी एक भाग पर, एकाग्र होने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। यह हमें दृढ़ संकल्पी बनाता है।
योगशास्त्र के अनुसार पांच प्राण होते हैं =
प्राण
अपान
उदान
समान
व्यान
प्रत्याहार= इन्द्रियों का अपने विषय की ओर ना जाकर चित्त के अनुसार ही वृत्ति बनाए रखना ही प्रत्याहार हैं।
धारणा = शरीर के भीतर या बाहर किसी स्थान विशेष में चित्त का बंधना ही धारणा है।
ध्यान =
मन से पूरी वृत्तियों द्वारा आत्मा का अनुभव करना ध्यान है।
समाधि=
समाधि उस सम अवस्था का नाम है, जिसमें जीवात्मा और परमात्मा की अभेद अनुभूति होती है यानी परमतत्व की प्राप्ति होती हैं।
योग के इन्हीं आठ अंगो में, सभी तरह के योग का समावेश हो जाता है।
वर्तमान में योग के तीन अंग ही प्रचलित है=
आसन प्राणायाम और ध्यान।