मातृ-दिवस पर व्यक्त दु:ख
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मातृत्व जन्म देने से है जुड़ा?
या वात्सल्य के वरदान से गढ़ा?
वात्सल्य कर्तव्य है या करुणा से उपजी प्रतिक्रिया?
स्वाभाविक रक्षण की प्रेरणा,अनुवांशिक अभिक्रिया?
जैविक कोशिकाओं का गुण-धर्म?
या सभ्यता,संस्कृति का बचा-खुचा शर्म?
अनुत्तरित है विध्वंस के अंत तक रहेगा।
जब पूछोगे,ईशारा तुम्हारी ओर करेगा।
तुम्हें क्या पता! तुम प्रातक्रियावादी हो या पदचारी।
होती माँएँ ही है क्यों! शिशु की प्रथम प्रणाली।
देह के अंश से ईश्वर द्वारा है यह प्रायोजित लगाव।
या आत्म-सुख का हिलोरें मारता मानसिक विकार।
मातृ-दिवस के इस अवसर पर प्रश्न है एक स्वाभाविक।
माँओं के दायित्व पर प्रश्न,और माफ करने का मन आंशिक।
माँएँ तन तंदुरुस्त रखने डालती है एक फुल्का अतिरिक्त।
मन मनोहर रखने आदर्श की एक और घुट्टी पिला देती काश! स्वच्छ।
युद्ध को ललकारती हैं माँएँ।
दूध का कर्ज मांगती हैं माँएँ।
रणों में ह्त्या कर लौटे पुत्रों का तिलक करती हैं माँएँ।
बलात्कार कर मर्दानगी की घोषणा करते पुत्रों का बचाव करती है माँएँ।
भ्रष्टाचार कर अर्जित साम्राज्य की राजमाताएँ,गर्व से, होती हैं माँएँ।
ऐसा न कह दो कि संतान की फिक्र करती हैं माँएँ।
वात्सल्य और कर्तव्य का जिक्र करती हैं माँएँ।
मातृ-दिवस की परम्पराएँ हैं माँएँ।
लगाती थप्पड़ यदि खुद जन्म लेने उनमें,तब होती माँएँ।
गांधारी,कुंती,कैकसी पुत्रों को
कैकयी मंथरा को
और मुसोलिनी,हिटलर की माँएँ।
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