मां
मां होती है मां , मां के जैसा और कोई नहीं,
ममता और करुणा की साक्षात देवी होती है मां,
अपने पहले जो बच्चों के बारे में सोच,
वह होती है मां।
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भारतीय संस्कारों और संस्कृति की जननी होती है मां,
बच्चों की प्रथम गुरु कहलाती है मां,
खुद भूखी रहकर बच्चों का,
भरण पोषण कोई कमी नहीं रखती है मां।
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खुद अनपढ़ या कम पढ़ी लिखी होने के बावजूद,
बच्चों को अच्छी आजीविका के लिए,
पढ़ाई करवाकर तैयार करती है मां।
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बेटी की सच्ची सहली कहलाती है मां,
बेटी को कब क्या चाहिए सब जानती है मां,
अच्छे संस्कार सृजित कर,
ससुराल के लिए तैयार करती है मां।
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बेटी को भी बेटे के बराबर,
अधिकार देने की बात करती है मां,
अपनी जवानी अपने बच्चों के नाम,
न्यौछावर करती है मां।
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चूल्हा चौका संभालने के साथ,
घर का बजट भी संभालती है मां,
छोटे छोटे रोगों की दवाई देकर,
अपने घर की वैद्य कहलाती है मां,
दादी नानी के नुस्खों को,
घर पर आजमाती है मां।
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बच्चों के नाज़ नखरे उठाती है मां,
बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी,
यही बात अपने मन को समझाती है मां,
बेटी, बहिन , बहु, प्रेयसी, पत्नी के बाद,
मां के रूप में नारी के किरदार को,
अच्छे से निभाती है मां।
इसलिए मां सच्ची हितैसी है,
और कोई दूसरा कोई नहीं।
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मां की खुशी में देवी देवताओं की खुशी है,
मां का अनादर देवी देवताओं का अनादर है,
मां को दुखी करके देवी देवता की पूजा अर्चना व्यर्थ है,
मां के चरणों में ही तीनों भुवनों का सुख है।
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डॉ प्रवीण ठाकुर
भाषा अधिकारी
निगमित निकाय भारत सरकार
शिमला हिमाचल प्रदेश।