*भोग कर सब स्वर्ग-सुख, आना धरा पर फिर पड़ा (गीत)*
भोग कर सब स्वर्ग-सुख, आना धरा पर फिर पड़ा (गीत)
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भोग कर सब स्वर्ग-सुख, आना धरा पर फिर पड़ा
1)
चार दिन का था प्रवास, असीम सुख का वास था
चार दिन की नियति थी, पूर्णतः आभास था
कुछ कहो जो सुख मिला, सचमुच बहुत था वह बड़ा
2)
कर्म कुछ अच्छे रहे, जो देवलोक दिला गए
मरु-भवन में पुष्प ज्यों, कुछ पुण्य-स्रोत खिला गए
लौटने की जब घड़ी, आई किया मन को कड़ा
3)
स्वर्ग है विश्राम-गृह, बस दो दिवस जाकर रहे
प्रेम की अनुभूतियॉं, क्या-क्या हृदय कैसे कहे
मन उदासी से भरा, तन मर्त्य जग में फिर खड़ा
भोगकर सब स्वर्ग-सुख, आना धरा पर फिर पड़ा
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451