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22 Feb 2024 · 1 min read

बुरा मानेंगे----

एकांत में पहुँचते हैं शब्द मेरे
भीड़ में मिले कभी तो बुरा मानेंगे।

आंख ताबेदार है पानी संभाल लेती है
किसी के सामने कहेगी तो बुरा मानेंगे।

कोलाहल बाहर का सुना नहीं जाता
चुप भीतर ठहर गई तो बुरा मानेंगे ।

कोई पल राख से पत्थर बन जाता है
कहीं आँख में गिरा तो बुरा मानेंगे ।

चटक मन कहा करता है कभी-कभी
कागज़ पर न उतरा तो बुरा मानेंगे।

वो ख्वाब का बादल लिए याद का पानी
कहीं और अगर बरसा तो बुरा मानेंगे।

रूठ जाने की रवायत निभाएंगे हम
वो मनाने नहीं आया तो बुरा मानेंगे ।

उसे दिल की लगी हमें दिल्लगी का शौक
बुरा उसको लगा अगर तो बुरा मानेंगे ।

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