शलभ से
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
साहित्य चेतना मंच की मुहीम घर-घर ओमप्रकाश वाल्मीकि
प्रेम हो जाए जिससे है भाता वही।
दिल में उत्तेजना और उम्मीदें ज़र्द हैं
खुश हो लेता है उतना एक ग़रीब भी,
*यह भगत सिंह का साहस था, बहरे कानों को सुनवाया (राधेश्यामी छ
जिंदगी एक खेल है , इसे खेलना जरूरी।
प्रतियोगी छात्रों का दर्द
अंजनी कुमार शर्मा 'अंकित'
ज़िद से भरी हर मुसीबत का सामना किया है,
ना ढूंढ मोहब्बत बाजारो मे,
हिंदी
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक