भारत में बालश्रम : एक अभिशाप-पुस्तक समीक्षा मनोज अरोड़ा
देश में बाल मजदूरी का बढऩा गरीबी तो है ही, इसके साथ-साथ मुख्य कारण है उन बालकों के अभिभावकों का अशिक्षित होना। अक्षरज्ञान न होने के कारण वे शिक्षा के महत्त्व को नहीं जान पाते और पीढिय़ों से चली आ रही प्रथा के अनुसार वह व्यक्ति अपनी संतान को भी स्वयं की तरह बंधुआ मजदूर बना लेते हैं।
सरकारी तथा गैरसरकारी संस्थानों की ओर से बाल मजदूरी की रोकथाम हेतु कड़े कदम उठाये जाते हैं, उद्योगों तथा मिलों से नाबालिग बालक-बालिकाओं को कार्य से मुक्त भी करवाया जाता है, परन्तु इसके साथ-साथ अगर उन बालश्रमिकों के अभिभावकों का सर्वे कर उनको शिक्षा के प्रति जागरुक किया जाये तो जहाँ एक ओर शिक्षा का प्रकाश फैलेगा वहीं दूसरी ओर बाल मजदूरी भी कम होगी।
शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी डॉ. अंजना वर्मा एवं डॉ. रश्मि सोमवंशी द्वारा शोधपरक पुस्तक ‘भारत में बालश्रम : एक अभिशाप’ इन्हीं तथ्यों पर आधारित है। पुस्तक में सम्मिलित ‘बालश्रम अवधाराणा एवं स्वरूप’ से लेकर ‘बालश्रम समस्या के प्रभाव व सुझाव’ तक दस अध्यायों में लेखिकाद्वय ने बालश्रम से जुड़ी समस्याओं पर गम्भीरता से कलम चलाई है।
जिसमें बाल-मजदूरी की रोकथाम हेतु सरकार के कदम, स्वैच्छिक संगठनों के सम्पूर्ण कार्यों की सूची सहित आँकड़ों को भी प्रदर्शित किया है, जिनसे हमें यह ज्ञात होता है कि कौन-कौनसे राज्यों तथा प्रमुख स्थानों पर किन-किन कार्यों में बाल-मजूदर अपना बहुमूल्य जीवन अपने अभिभावकों के कहने तथा स्वैच्छिक रूप से झोंक रहे हैं।
अगर सरकारी एवं निजी संस्थाओं द्वारा मिलकर झुग्गी-झोंपडिय़ों तथा कच्ची बस्तियों का सर्वे कर बालकों के साथ-साथ उनके अभिभावकों को शिक्षा के प्रति जागरुक किया जाए तो शायद बाल-मजदूरी काफी हद तक कम हो सकती है, क्योंंकि उन्हें सबसे अधिक व मुख्य रूप से आवश्कयता है तो सही मार्गदर्शन की जो आज के सुशिक्षित नागरिक ही प्रदान कर सकते हैं।
लेखिकाद्वय डॉ. अंजना वर्मा एवं डॉ. रश्मि सोमवंशी द्वारा लिखित शोधपरक पुस्तक ‘भारत में बालश्रम : एक अभिशाप’ शोधार्थियों एवं अन्य पाठकों में अहम् स्थान बनाएगी। इसी कामना के साथ…………..।
—मनोज अरोड़ा
(लेखक एवं समीक्षक)
संपादक-साहित्य चन्द्रिका (मासिक पत्रिका) एवं शोध त्रैमासिकी
जयपुर। +91-992001528