भय भव भंजक
कष्ट निवारिणी पाप नाशिनी माँ
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।
दुर्लभ ,सुगम शुभ मंगल करती
अंधकार की ज्योति माँ।
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ दायनी माँ।।
आगम ,निगम पुराण तेरी
महिमा गावैं जग कल्याणी माँ
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।
खड्ग ,त्रिशूल ,घंटा ,खप्पर ,पदम् चक्र वज्र धारिणी रौद्र रूप की काली माँ
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।
संसय हरणी संकल्प की जननी
भक्ति की शक्ति निर्विकार की हस्ती
माँ जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ दायनी माँ।।
तेरे द्वारे जो भी धावे मनवांच्छित फल
पावे भोग भाग्य की दाता माँ
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।
पापी अधम का बढ़ता अत्याचार तब तब काल दंड काअवतार
युग धरती हरति संताप माँ
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।
शोक ,रोग से निर्भय करती
विघ्न विनासानी विध्यवासिनी
मां जाय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।
नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश