बैरिस्टर ई. राघवेन्द्र राव
बैरिस्टर ई. राघवेन्द्र राव
ई. राघवेन्द्र राव का जन्म अगस्त सन् 1889 ई. में कामठी नगर में हुआ। उनके पिता श्री नागन्ना अपने समय के प्रभावशाली एवं संपन्न व्यापारी थे। श्री नागन्ना राव व्यवसाय के लिए बिलासपुर (छत्तीसगढ़) आए थे और उसके बाद वहीं बस गए। श्री नागन्ना की धर्मपत्नी श्रीमती लक्ष्मी नरसम्मा उदार स्वभाव वाली, धार्मिक एवं अनुशासन प्रिय महिला थीं। ई. राघवेन्द्र राव पर पारिवारिक आदर्श का बाल्यावस्था से ही प्रभाव पड़ा। फलस्वरूप उन्होंने एक प्रतिभाशाली, मेधावी, बुद्धिमानी एवं विलक्षण व्यक्ति के साथ उज्ज्वल चरित्रवान, सत्पुरुष बनने की प्रथम सीढ़ी बाल्यकाल में ही तय कर ली।
राघवेन्द्र राव की प्राथमिक शिक्षा बिलासपुर में संपन्न हुई। यहीं के म्युनिसिपल हाईस्कूल से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उच्च शिक्षा के लिए ई. राघवेन्द्र राव ने हिस्लॉप कॉलेज, नागपुर में प्रवेश लिया। वहीं उनके मन में कानून की शिक्षा प्राप्त करने के इच्छा जागी। इसी बीच सरस्वती बाई नामक सुशील, सरल स्वभाव की कन्या से उनका विवाह संपन्न हुआ।
ई. राघवेन्द्र राव कानून की शिक्षा प्राप्त करने विलायत जाना चाहते थे। पिताश्री नागन्ना राव उनको लंदन नहीं भेजना चाहते थे, परंतु वे किसी तरह उन्हें मनाकर लंदन चले गए। अभी ई. राघवेन्द्र राव ने विलायत पहुँच कर बैरिस्टरी की शिक्षा आरंभ ही की थी कि उनके पिता श्री नागन्ना राव का आकस्मिक निधन हो गया। ई. राघवेन्द्र राव को शिक्षा बीच में छोड़ कर स्वदेश लौटना पड़ा।
सन् 1912 में ई. राघवेन्द्र राव पुनः विलायत चले गए, जहाँ उन्होंने बड़े लगन के साथ वकालत की शिक्षा पूरी की। सन् 1914 में ई. राघवेन्द्र राव बैरिस्टर बनकर बिलासपुर लौटे और वहीं वकालत शुरू कर दी। देश के राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन की बागडोर उस समय लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के हाथों में थी। सारे देश में उस समय गरम दल की हवा चल रही थी। इसी समय राघवेन्द्र राव का राजनैतिक जीवन में प्रवेश हुआ। वे सन् 1916 से सन् 1927 तक बिलासपुर नगर पालिका के अध्यक्ष रहे। वे जिला परिषद के अध्यक्ष पर भी आठ वर्षों तक पदासीन रहे।
सन् 1920 ई. में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीजी के आह्वान पर ई. राघवेन्द्र राव वकालत छोड़कर सक्रिय राजनीति में कूद पड़े। उसी वर्ष वे महाकौशल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। जब प. मोतीलाल नेहरू ने स्वराज्य पार्टी का गठन किया, तब ई. राघवेन्द्र राव भी उसमें सम्मिलित हो गए।
सन् 1923 ई. से सन् 1926 ई. तक वे सी. पी. और बरार विधानसभा में स्वराज्य पार्टी के सदस्य व नेता रहे। उन्होंने सेठ गोविंद दास और पं. रविशंकर शुक्ल के साथ मिलकर क्षेत्र में स्वराज्य पार्टी का गठन किया था। सन् 1926 ई. में गठित मंत्रि मण्डल में ई. राघवेन्द्र राव शिक्षामंत्री बनाए गए थे। यद्यपि वे शासन के सक्रिय सदस्य थे, फिर भी साइमन कमीशन का बहिष्कार कर उन्होंने अपनी देशभक्ति और अदम्य साहस का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया।
सन् 1930 में ई. राघवेन्द्र राव सात वर्षों के लिए मध्यप्रांत के राज्यपाल के गृह सदस्य नियुक्त हुए, जो उस समय राज्यपाल के बाद सबसे महत्वपूर्ण पद होता था। इस पद पर रहते हुए उन्होंने कृषकों की दशा सुधारने के लिए ऋणमुक्ति, सिंचाई सुविधओें का विस्तार, चकबंदी इत्यादि कई जनहित के कार्य करवाए।
सन् 1936 ई. में राघवेन्द्र राव चार माह के लिए मध्यप्रांत के प्रभारी राज्यपाल भी बनाए गए। उन दिनों किसी भारतीय नागरिक को यह सम्मान प्राप्त नहीं होता था।
सन् 1939 में राघवेन्द्र राव भारत सचिव के सलाहकार पद पर लंदन बुलाए गए। वहाँ वे दो वर्षों तक रहे। अंतिम समय में ई. राघवेन्द्र राव वाइसराय की कार्यकारिणी कौंसिल में प्रतिरक्षा मंत्र पद पर भी नियुक्त हुए।
अंग्रेजी शासन के उच्च पदों पर आसीन रहते हुए भी ई. राघवेन्द्र राव ने राष्ट्रीयता की भावना का त्याग नहीं किया। वे अंग्रेजी प्रशासन से भारतीयों के अधिकार के लिए सतत् संघर्ष करते रहे।
सन् 1916 ई. में जब बिलासपुर क्षेत्र में प्लेग की महामारी फैली हुई थी, तब ई. राघवेन्द्र राव ने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए कुछ विश्वसनीय साथियों के साथ बीमार लोगों की खूब सेवा की। सन् 1929-30 ई. के ऐतिहासिक अकाल के समय भी उन्होंने गरीब किसानों की भरपूर सहायता की। उनके प्रयासों से लगान व मालगुजारी की वसूली पर रोक लगाई गई तथा लगान का पुनर्निर्धारण उदारता के साथ किया गया।
ई. राघवेन्द्र राव ने मध्यप्रांत में निरक्षरता दूर करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा की तीव्रगामी योजना बनाई। ग्रामीण इलाकों में पुस्तकालयों और वाचनालयों की व्यवस्था करना, शिक्षा में कृषि विषयां को शामिल कर रोजगार से जोड़ना, बालिकाओं की समुचित शिक्षा-दीक्षा के लिए स्कूलों की व्यवस्था करना शिक्षा मंत्री के रूप में उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ थी। उन्होंने संपूर्ण बिलासपुर जिले में पाठशालाओं का न केवल जाल फैला दिया अपितु प्रचलित पाठ्यक्रम के मापदण्ड को ऊँचा उठाने का सतत् प्रयास किया।
डॉ. राघवेन्द्र राव रसायन शास्त्र, ज्योतिष व खगोल विज्ञान, अंग्र्रेजी व हिन्दी साहित्य के महान ज्ञाता थे। इसके साथ-साथ संसदीय व्यवहार नीति में भी उनकी विद्वता प्रसिद्ध थी। वे बड़े ही अध्ययनशील प्रवृत्ति के थे। आंध्रप्रदेश के वाल्टेयर विश्वविद्यालय ने ई. राघवेन्द्र राव को डी. लिट् की उपाधि से सम्मानित किया।
ई. राघवेन्द्र राव के व्यक्तिगत पुस्तकालय में लगभग पंद्रह हजार पुस्तकें, थीं जो नगरपालिका वाचनालय, बिलासपुर; एस. बी. आर. कॉलेज वाचनालय, बिलासपुर; नागपुर विश्वविद्यालय तथा आंध्रप्रदेश विश्वविद्यालय में आज भी उपलब्ध हैं।
15 जून सन् 1942 ई. को मात्र 53 वर्ष की अल्पायु में ई. राघवेन्द्र राव का निधन हो गया।
देशहित में किए गए अभूतपूर्व कार्यों के कारण वे सदैव दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बने रहेंगे।
-डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़