बेटियां।
सृष्टि की अखंडता की कड़ी है बेटियां।
मां की वात्सल्य,ममता, स्नेह देती है बेटियां।
दो – दो पीढ़ियों को जीवंत करती है बेटियां।
थककर सो जाते है मां की गोंद में।
रखती परिवार का ख्याल आमोद प्रमोद में।
दुनिया के हर क्षेत्र में काबिज है बेटियां।
खेल हो, विज्ञान हो, या नवनिर्माण कार्य हो।
संगीत हो, इतिहास हो या राजनीति प्रमाण हो।
साहित्य, कला, सौंदर्य, या सिनेमा का प्रांगण हो।
पीवी सिंधु, मैडम क्यूरी, महादेवी वर्मा, रानी लक्ष्मीबाई।
गार्गी, अपाला, लोपामुद्रा, मीराबाई।
मदर टेरेसा, लता मंगेशकर, सावित्री, अहिल्याबाई।
नवसृजन की एक अभिन्यास है बेटियां।
काटती है जो कुरीतियों की बेड़ियां।
भ्रूण में होती हत्या जब किसी की बेटी की।
गर्भ में ठहरी क्या कहती है बेटियां।
मैं तो हूं मां तुम्हारी एक परी।
मां तुम भी हो तो किसी की बेटियां।
जो मां तुम्हारे संग ऐसा ही करती।
बेटों को भी पैदा वही करती है बेटियां।
मां मैं भाई की कलाई पर राखी बांधूंगी।
उससे अपनी रक्षा की वादा मांगूंगी।
बाबूजी की सेवा।
मम्मी तेरा हाथ मैं बटाउंगी।
गोल – गोल न सही रोटी।
किसी देश का नक्शा मैं बनाऊंगी।
रोज बदल – बदल के पकवाने खिलाऊंगी।
घर को स्वच्छता से स्वर्ग बनाऊंगी।
पतंग उड़ाने से लेकर रॉकेट तक उड़ाती है बेटियां।
जो बेटियों को तुम मार दोगे।
तो तुम्हारे बेटों से कौन करेगा शादियां।
मम्मी मैं तो लगता बड़ी हो गई।
तभी मेरी शादी की हड़बड़ी हो रही।
बाबू जी मैं घर को कैसे छोडूंगी।
मम्मी का आंचल पकड़कर रोऊंगी।
क्या डका दोगे चौखट अपने घर का।
सबके सामने पराया बना दोगे क्या।
जिन हाथों ने मुझे चलना सिखाया।
उन्हीं हाथो से दामन छुड़ा लोगे क्या।
मम्मी मेरी वो किताब तुम संभाले रखना।
जिसको पढ़ते बीता था मेरा बचपना।
मैं खेली थी जिस घर अंगना।
जहां छनके थे मेरे चूड़ी कंगना।
मैं बाबू का घर छोड़ के।
बाबुल के घर आ गई।
मेरी सासु मां बहुरिया कहकर बुला रही ।
मोरे सजना मिलाए नजर से नजर।
मैं तो शर्म से हो गई तार – तार।
करूं मैं श्रृंगार देखूँ जब आईना।
लगता सब कुछ फीका।
मां तेरे माथे पे काजल के टीका के बिना।
सोच सोचकर मेरी अंखियां भर गई।
क्यों मेरी शादी की उमर हो गई।
मां के आंचल के आड़ से क्यों बिछड़ गई।
खेलती थी जब मैं अपने घर द्वारे।
बाबू की गुड़िया रानी बिट्टी कहकर पुकारें।
बाबू जी के कंधे चढ़ आसमान को छुआ।
उड़ता था मेरे सिर के ऊपर से बादल का धुआं।
छूट गई गलियां इक दिन की शहनाई में।
हूं मैं खुश अपने बालमा की कमाई में।
दहेज से परहेज करो।
अच्छी समाज की इमेज करो।
कन्यादान से बड़ा न कोई दान है।
बेटा, बेटियों से ही चलता खानदान है।
उनसे बड़ा न कोई सामान है।
लक्ष्मी विराजे उस घर में।
जिस घर में होता बेटियों का सम्मान है।
घर को जन्नत आलय बनाती है बेटियां।
मां – बाप के हाथों की लकड़ी है बेटियां।
सबके हृदय की है चहेतियां।
बेटी ही है इस धरा की पेटियां।
हाथ में रक्षा का धागा है कोई।
रक्षा के बंधन की डोर है बेटियां।
यही बनती है वैज्ञानिक, साध्वी, अभिनेत्रियां।
कई सीख समाज को देती है बेटियां।
घर की रसोइया संभालती है बेटियां।
अपने बच्चो का ख्याल रखती है बेटियां।
बनके दादी मां कहानी सुनाती है बेटियां।
बनके मां लोरी गाती है बेटियां।
ब्यूटी पार्लर,मेहंदी रचाती बेटियां।
देश के यश का परचम लहराती है बेटियां।
ओलंपिक में थी जीती जो मेडल बेटियां।
की गई साथ उनके दरिंदिगिया।
जंतर – मंतर पर धरने पर बैठ गई।
मिला न उनको न्याय तनिक भी रत्तियाँ।
दूसरो के संग जो करोगे गुस्ताखियां।
रूहे कांप जाए जब रोटी है बेटियां।
नारी सशक्तिकरण, नारी सुरक्षा।
हो उनमें अदम्य साहस इच्छा।
देश की विकसित पहलू की रूप है बेटियां।
है स्वतंत्र रूप न हथकड़ी बेटियां।
बेटी तुल्य है ये भारत की मटियां।
दु:ख से न पीटे कोई छाती बेटियां।
चाय के बागान में चाय चुनती है बेटियां।
देश की अर्थव्यवस्था को चलाती है बेटियां।
कहते आनंद है ये देवी बेटियां।
उनके मुस्कुराहट में है अपनी खुशियां।
श्री राम की भार्या मां सीता है बेटियां।
जनकनंदिनी सनातन धर्म की संस्कृतियां।
श्रीकृष्ण संग राधा की प्रेम जोड़ियां।
गंगा,यमुना,सरस्वती बहती बेटी रूप तरिणीयां।
रहते जिस धरा पर भारत मां है बेटियां।
आओ आज प्रण करें।
एक अभियान रण करें।
उच्च शिक्षा दिलाएंगे बेटियों को यूनिवर्सिटियां।
देश की गरिमा, संस्कृति, मान प्रतिष्ठा है बेटियां।
देवी का साकार रूप बेटियां।
देशहित की छवि की हुंकार बेटियां।
किसी की बहू, बहन, मां, दादी नानी , मौसी बुआ, चाची, भाभी, ननद, साली बनती है बेटियां।
हो पल्लवित कुसुमित बेटा और बेटियां।
कोई न रोक – टोंक चढ़े हर सीढियां।
उनसे ही हम और चलती है पीढ़ियां।
बेटा है चिराग तो है चांदनी बेटियां।
बिखेरे जो रोशनी है वो रोशनदान खिड़कियां।
बेटियों के नाम भी करें प्रॉपर्टियां।
आनंद इस साहित्य मंथन में।
करता इक गुहार।
बेटियां हो स्वतंत्र मुखरित हो उनके स्वप्न साकार।
RJ Anand Prajapati