तारा टूटा
तारा टूटा
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ख़्वाब लिए एक तारा टूटा,
जाकर दिल पर जा अटका..
आसमान से टूटा था वो,
जाकर धरा पर जा खिसका..
जिसने उसको टूटते देखा,
उसके दिल पर जा बैठा..
दिल कहता अब,सुनो ज्योतिर्मय,
मुझपर तूं क्यों आ बैठा..
तेरा भार उठाऊं मैं या,
कर्म करूं धक-धक धड़कूं..
भार लिए मैं तेरा अब तो,
साँसों संग कैसे फड़कूं..
ख्वाहिशें मुझमें नहीं बची है ,
संग लिए मैं तुझे खड़कूं..
स्पंदित होता मैं हर पल अहर्निश,
मन हंसता या रोता हो..
कोई टूटकर बिखर रहा हो,
या गम में ही सोता हो..
तारा बोला हँसकर दिल को,
बतलाओ मेरा कसूर भी..
मैं तो खुद से रूठा था,
दुआएं मन ने क्यों मांगी थी,
अम्बर में मैं जब टूटा था..
अपने ख्वाबों के कसूर को,
मेरा तुम बतलाओ ना..
जग हो वैरी जब भी धरा पर,
आसमान में तुम आओ ना..
ताराओं की अपनी बस्ती है,
उसमें तुम बस जाओ ना…
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ३०/११/२०२४ ,
मार्गशीर्ष , कृष्ण पक्ष ,चतुर्दशी ,शनिवार
विक्रम संवत २०८१
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