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3 Sep 2023 · 1 min read

“बाढ़”

कोई ओर दिखते ना छोर
पानी का ऐसा जोर,
बाढ़ सब कुछ बहा ले गई
चीख चिल्लाहट चहुँओर।

टूटकर बिखरे घर औ’ सपने
उस कहर के क्या कहने,
मौत के सन्नाटे पसर गए
कौन पराये कौन अपने।

पानी से यूँ घिर करके लोग
अन्न-जल को तरसे,
चार साल से सूखा पड़ा था
अब आफत बनके बरसे।

चारों ओर मच गया हाहाकार
प्रकृति बनी बेरहम,
मानव पशु-पक्षियों के शव देख
आँखें हो जाती नम।

समझ न आते किसी को भी
यह कैसी आफत आई,
इस अजब भयंकर तबाही की
अब कैसे होगी भरपाई?

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
साहित्य और लेखन के लिए
लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त।

Language: Hindi
15 Likes · 6 Comments · 102 Views
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