बदरा न बरसे…….
बदरा न बरसे…….
नभ में घनघोर घटा घुमड़ घुमड़ जाये।
बदरा न बरसे सावन सूना बीता जाये।।
नयना बरसे
मनवा तरसे
बैरी बादल
क्यों न बरसे
प्यासी धरा का
जिया निकला जाये ।।
नभ में घनघोर घटा घुमड़ घुमड़ जाये।
बदरा न बरसे सावन सूना बीता जाये।।
पपीहा बोले
मयूरा डोले
कोयल कूके
होल होल
जल बीन मीन
तड़पत जाये
नभ में घनघोर घटा घुमड़ घुमड़ जाये।
बदरा न बरसे सावन सूना बीता जाये।।
पवन भी लगे
भटकी पथ से
पंछी भी तड़पे
तपते नभ से
धरा बिच जीव
बैठे आस लगाये ।।
नभ में घनघोर घटा घुमड़ घुमड़ जाये।
बदरा न बरसे सावन सूना बीता जाये।।
अमवा पे झूले
अब पड़ने लगे है
मुंडेर पे कागा
अब बोलने लगे है
गौरी भी बैठी
पिया की आस लगाये ।।
नभ में घनघोर घटा घुमड़ घुमड़ जाये।
बदरा न बरसे सावन सूना बीता जाये।।
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डी. के. निवातियाँ ——–
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