पिता
पिता परिवार के आँगन में खड़ा,बरगद का ऐसा पेड़ हैं।
जिसके दम पर पल जाते है, सब बच्चे बनकर शेर हैं।।
बनकर हिम्मत परिवार की, हौंसला हर सदस्य का पिता बढ़ाता है।
जो नर्म बहुत है अंदर से पिता,सबको बड़ा कठोर नज़र वह आता है।।
कभी अपने कंधों पर बैठाकर, पिता बच्चों को मेले लेकर जाता है।
फिर धीरे धीरे उन बच्चों को, उनके अपने पैरों पर चलना सिखाता है।।
घर की रसोई का हर साधन,पिता ख़ुद जाकर बाज़ार से लाता है।
बच्चों को खिलाकर के भोजन,फिर वो पत्नी संग बैठकर खाता है।।
परिवार घिरे जब आँधियों में, हिम्मत की दीवार पिता बन जाता है।
मँझधार में घिर जाये जब नैया, तब पतवार पिता बन जाता है।।
हर बच्चे का स्वाभिमान पिता,और पूरे परिवार का है अभिमान पिता।
कभी बन जाता है धरती पिता,तो कभी वही बन जाये आसमान पिता।।
कहे विजय बिजनौरी गर्व से यह,हर परिवार का है अभिमान पिता।
हर घर के दिल की धड़कन है,और पूरे परिवार के दिल की जान पिता।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी।