पावन पर्व दशहरा
प्रेम के पथ हम क्यूँ नहीं चल रहे
संस्कार अपने क्यूँ स्वार्थ के लिए छल रहे
नित्य नए रावण जो लोगों मे पल रहे
करोड़ों जो रक्तबीज जहर बन के घुल रहे
पाप पर ये पुण्य की अलंकारी जीत है
असत्य पर ये सत्य की प्रेरणामयी प्रीत है
धर्म का अधर्म पर संग्राम ये सचित्र है
कलयुग के कालिया का चित्र ये विचित्र है
आज तो हर रूप में कंस और रावण का अंस है
हो रहा कितना सघन प्रलयकारी ये विध्वंश है
द्वेष का दंश क्यूँ मानवता को खोखला कर रहा
इतनी इतनी सी बात पर क्यूँ आपस मे लड़ रहा
अपने ही जीवन को प्रलय से क्यूँ ढँक रहा
करके सारे बुरे कर्म पाप कलंक अपने माथे पर रच रहा
इसी क्रोध पाप लालच और द्वेष को मिटा रहा
विजयादशमी का पर्व हमको कुछ सिखा रहा
दुर्गा ने बन रण चंडी माहिषासुर का मर्दन किया
वैसे ही राम ने रावण के अहंकार को धूमिल किया
बुराई पर अच्छाई का ये करुणामयी स्त्रोत है
त्याग और तपस्या का भावपूर्ण संदेश है
पाप पर ये पुण्य की अलंकारी जीत है
सत्य पर असत्य की ये प्रेरणामई प्रीत है
दशहरा के इस पावन पर्व की आप सभी को बहुत बहुत बधाई