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26 Oct 2020 · 1 min read

पावन पर्व दशहरा

प्रेम के पथ हम क्यूँ नहीं चल रहे
संस्कार अपने क्यूँ स्वार्थ के लिए छल रहे
नित्य नए रावण जो लोगों मे पल रहे
करोड़ों जो रक्तबीज जहर बन के घुल रहे
पाप पर ये पुण्य की अलंकारी जीत है
असत्य पर ये सत्य की प्रेरणामयी प्रीत है
धर्म का अधर्म पर संग्राम ये सचित्र है
कलयुग के कालिया का चित्र ये विचित्र है
आज तो हर रूप में कंस और रावण का अंस है
हो रहा कितना सघन प्रलयकारी ये विध्वंश है
द्वेष का दंश क्यूँ मानवता को खोखला कर रहा
इतनी इतनी सी बात पर क्यूँ आपस मे लड़ रहा
अपने ही जीवन को प्रलय से क्यूँ ढँक रहा
करके सारे बुरे कर्म पाप कलंक अपने माथे पर रच रहा
इसी क्रोध पाप लालच और द्वेष को मिटा रहा
विजयादशमी का पर्व हमको कुछ सिखा रहा
दुर्गा ने बन रण चंडी माहिषासुर का मर्दन किया
वैसे ही राम ने रावण के अहंकार को धूमिल किया
बुराई पर अच्छाई का ये करुणामयी स्त्रोत है
त्याग और तपस्या का भावपूर्ण संदेश है
पाप पर ये पुण्य की अलंकारी जीत है
सत्य पर असत्य की ये प्रेरणामई प्रीत है
दशहरा के इस पावन पर्व की आप सभी को बहुत बहुत बधाई

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 555 Views

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