Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Dec 2022 · 4 min read

महाराजा अग्रसेन, प्राचीन अग्रोहा और अग्रवाल समाज

महाराजा अग्रसेन, प्राचीन अग्रोहा और अग्रवाल समाज
———————————————–
आज से लगभग पाँच हजार साल पहले महाराजा अग्रसेन अग्रोहा के महान शासक थे। दिल्ली के निकट अग्रोहा की स्थापना आपने ही की थी । आप के राज्य में सब सुखी थे तथा समृद्धि थी ।आप प्रजा को पुत्रवत मानते थे तथा आपका सारा जीवन प्रजा की भलाई के लिए ही बीता।

अग्रोहा में सामाजिक समानता के लिए आपने बहुत कार्य किया। सबसे प्रमुख कार्य अग्रोहा की जनता को एक सूत्र में बाँधने के लिए तथा सब प्रकार से जन्म पर आधारित भेदभाव को मिटाने के लिए आपने अग्रोहा के संपूर्ण समाज को अठारह भागों में विभक्त करके उन्हें अठारह गोत्र- नाम प्रदान किए। इस कार्य के लिए अठारह बड़े भारी यज्ञ आपके द्वारा किए गए तथा एक-एक यज्ञ में एक-एक गोत्र- नाम अग्रोहा के निवासियों को ऋषियों द्वारा प्रदान किए गए । आपने यह भी व्यवस्था की कि एक गोत्र की शादी उसी गोत्र में नहीं होगी , बल्कि बाकी सत्रह गोत्रों में ही यह शादी अनिवार्य रूप से होगी। विवाह का संबंध न केवल दो व्यक्तियों से बल्कि दो परिवारों और दो समाजों से भी होता है। अतः गोत्र के बाहर अनिवार्य विवाह के कारण धीरे-धीरे अग्रोहा में सब लोग इस प्रकार से घुल-मिल गए कि अठारह गोत्रों में भी कोई भेदभाव नहीं रहा ।

आपने यज्ञ करते समय तथा गोत्रों का नाम प्रदान करते समय जब यह देखा कि यज्ञ में पशु की बलि दी जा रही है तथा एक घोड़े को यज्ञ स्थल पर जब आपने करुणा भाव से देखा तो आपके हृदय में अहिंसा – प्रवृति प्रबल हो उठी तथा आपने यज्ञ में पशु- हिंसा को समाप्त करने का निश्चय किया । उस समय के परंपरावादी समुदाय द्वारा यज्ञ में पशु- बलि को बड़ा भारी महत्व दिया जाता था। ऐसे समुदाय ने पशु-बलि के बगैर किए जा रहे आपके यज्ञ को यज्ञ मानने से ही इनकार कर दिया तथा अठारहवें गोत्र- नाम को जो आप यज्ञ के माध्यम से प्रदान करना चाहते थे , उस गोत्र को भी गोत्र की स्वीकृति नहीं दी । परिणाम यह निकला कि यज्ञ अधूरा माना गया और अठारह की बजाय साढे़ सत्रह यज्ञों को मान्यता मिली । गोत्र भी अठारह के स्थान पर साढ़े सत्रह ही कहलाए । महाराजा अग्रसेन धारा के विपरीत अविचल खड़े रहे और उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध अपनी आवाज को मंद नहीं होने दिया।

आपने अग्रोहा की जनता के बीच कुटुंब की भावना विकसित की । ऐसा कहा जाता है कि अग्रोहा की जनसंख्या उस समय एक लाख के लगभग थी । अगर कोई व्यक्ति दरिद्र अथवा बेघर हो जाता था, तब कुटुंब की भावना से समस्त अग्रोहावासी उसे एक ईंट और एक रुपया प्रदान करते थे । इस तरह उपहार स्वरूप मिली हुई एक लाख ईंटों से बेघर का घर बन जाता था और एक लाख रुपयों के एकत्र होने से वह निर्धन व्यक्ति समृद्ध हो जाता था और अपना रोजगार शुरू कर देता था। इस तरह आपने अग्रोहा के जन-जन में समृद्धि,भाईचारा और समानता का सूत्रपात किया।

अग्रोहा के निवासी अग्रवाल कहलाए तथा हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी उनके हृदय में अग्रोहा तथा महाराजा अग्रसेन के प्रति आदर भाव विद्यमान रहा । आज भी प्राचीन अग्रोहा के निवासी अग्रवाल कहलाते हैं । उनमें अठारह गोत्र तो हैं लेकिन गोत्रों के आधार पर न कोई भेदभाव है और न ही अपने गोत्र में शादी करने का प्रचलन है। एक ईंट एक रुपए के सिद्धांत के माध्यम से महाराजा अग्रसेन ने उनमें आर्थिक समानता तथा बंधुत्व- भाव का जो बीज बोया था, वह फलदार वृक्ष के रूप में देश के कोने कोने में देखा जा सकता है। माँसाहार से भी अग्रवाल समाज आज भी कोसों दूर है ।

इस प्रकार हम पाते हैं कि महाराजा अग्रसेन एक साधारण महापुरुष थे। अपने पुरुषार्थ से उन्होंने एक नए समाज की रचना की। नए युग का सूत्रपात किया। यह कार्य इतना विलक्षण है कि एक साधारण हाड़-मांस के मनुष्य द्वारा किया जाना संभव नहीं जान पड़ता। ऐसा लगता है कि मानो ईश्वर ने ही महाराजा अग्रसेन जी के रूप में अवतार लेकर भारत की धरती पर एक बड़ा कार्य करके दिखाया है।

लेकिन यह भी सत्य है कि महाराजा अग्रसेन ने कोई चमत्कार नहीं दिखाया। उन्होंने जादू-टोने से कोई कार्य नहीं किया। अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति और विशुद्ध सात्विक विचारों के साथ वह संपूर्ण आत्मबल से अपने मार्ग पर चले। हजारों-लाखों व्यक्तियों को उन्होंने सही मार्ग दिखाया। यह अपने आप में एक चमत्कार तो है लेकिन मनुष्य की शक्तियों का ही चमत्कार है।
उन्हें हम महाराजा अग्रसेन के साथ-साथ भगवान अग्रसेन भी कह तो सकते हैं तथा यह उनके प्रति हमारी श्रद्धा की चरम अभिव्यक्ति होगी। लेकिन ऐसा कहते समय इस बात को ध्यान में रखना होगा कि जो कार्य महाराजा अग्रसेन में हजारों वर्ष पहले किये, वह एक मनुष्य के रूप में उनके द्वारा किए गए महान और अद्भुत कार्य थे। उनके कार्य और विचार अनुकरणीय हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति उनके बताए रास्ते पर चल भी सकता है और उनके जैसा ही बन ही सकता है। भगवान अग्रसेन कहते समय महाराजा अग्रसेन की मानवीय पुरुषार्थ-शक्ति हमें हमेशा ध्यान में रखनी होगी।
————————————————
लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर( उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99 97 61 545 1

295 Views
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

* जिन्दगी *
* जिन्दगी *
surenderpal vaidya
विच्छेद
विच्छेद
Dr.sima
SP56 एक सुधी श्रोता
SP56 एक सुधी श्रोता
Manoj Shrivastava
शाश्वत प्रेम
शाश्वत प्रेम
Shashi Mahajan
न मैंने अबतक बुद्धत्व प्राप्त किया है
न मैंने अबतक बुद्धत्व प्राप्त किया है
ruby kumari
* मैं बिटिया हूँ *
* मैं बिटिया हूँ *
Mukta Rashmi
स्वाभाविक
स्वाभाविक
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
जो हम सोचेंगे वही हम होंगे, हमें अपने विचार भावना को देखना ह
जो हम सोचेंगे वही हम होंगे, हमें अपने विचार भावना को देखना ह
Ravikesh Jha
मैंने अब रूठना छोड़ दिया क्योंकि मनाने वाला ही रुठ गया।
मैंने अब रूठना छोड़ दिया क्योंकि मनाने वाला ही रुठ गया।
Aisha mohan
न जाने कौन रह गया भीगने से शहर में,
न जाने कौन रह गया भीगने से शहर में,
शेखर सिंह
पितृपक्ष में फिर
पितृपक्ष में फिर
Sudhir srivastava
खंभों के बीच आदमी
खंभों के बीच आदमी
राकेश पाठक कठारा
अपना जीना कम क्यों हो
अपना जीना कम क्यों हो
Shekhar Chandra Mitra
शीर्षक -तेरे जाने के बाद!
शीर्षक -तेरे जाने के बाद!
Sushma Singh
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
कविता
कविता
Rambali Mishra
समय ही तो हमारा जीवन हैं।
समय ही तो हमारा जीवन हैं।
Neeraj Agarwal
रोज दस्तक होती हैं दरवाजे पर मेरे खुशियों की।
रोज दस्तक होती हैं दरवाजे पर मेरे खुशियों की।
Ashwini sharma
चंदा मामा सुनो मेरी बात 🙏
चंदा मामा सुनो मेरी बात 🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
नफ़्स
नफ़्स
निकेश कुमार ठाकुर
सफ़र जो खुद से मिला दे।
सफ़र जो खुद से मिला दे।
Rekha khichi
Science teacher's Umbrella
Science teacher's Umbrella
Mr. Bindesh Jha
समय का सिक्का - हेड और टेल की कहानी है
समय का सिक्का - हेड और टेल की कहानी है
Atul "Krishn"
3249.*पूर्णिका*
3249.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
दीप ऐसा जले
दीप ऐसा जले
लक्ष्मी सिंह
नाउम्मीदी कभी कभी
नाउम्मीदी कभी कभी
Chitra Bisht
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
मेरी दोस्ती के लायक कोई यार नही
मेरी दोस्ती के लायक कोई यार नही
Rituraj shivem verma
मन ...
मन ...
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
तुम आओ एक बार
तुम आओ एक बार
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
Loading...