परीक्षा काल
याद हैं क्या आपको _ मासूम वो बचपन के दिन?
घर से कूच करते थे ,भारी बैग-बस्ता के बिन
मां कभी दही ,कभी शक्कर खाने को कहती थी
और न जाने क्या-क्या, टोटका करती रहती थी !
अच्छी हो परीक्षा और पा जायें उत्तम अंक
अंजाना-सा भय घेरता था सब को ,पिता राजा हों या रंक !
यूं लगता था परीक्षा ही है ,समग्र योग्यता का मापदंड,
अनभिज्ञ हम कस कर कमर,हिम्मत जुटाते थे प्रचंड I
परीक्षाओं के इतिहास में, फिर जुड़ गया नया अध्याय ,
परिक्षा वही ,बस जीवन बन गया कक्षा का पर्याय !
विभिन्न कौशलों के रंग से, भर कुची हम चल रहे .
जीवन में भरकर अनेकों रंग ,इंद्रधनुषी ताना बन रहे !