पद्धरि छंद ,अरिल्ल छंद , अड़िल्ल छंद विधान व उदाहरण
पद्धरि छंद ,अरिल्ल छंद , अड़िल्ल छंद
पद्धरि छंद –
16 मात्रा , चार चरण, सम मात्रिक छंद, दो दो पद समतुकांत।
यति १० – ६ पर या ८ – ८ पर , सभी चरण का अंत जगण(१२१)
मात्रा बाँट – ४ + ४ + ४ + ४ = १६ मात्रिक , अन्त १२१
( २ + ८ + २ + जगण )
10-6
मधु वाणी से भी , हो मलाल |
करना होगा तब , यह ख़याल ||
समझों यह नर है, घोर दीन |
अपनेपन से है , रस विहीन ||
8 – 8
बात सुनी पर ,करता वबाल |
सुनते है तब , उठते सबाल ||
इसकी वाणी , फिर क्यों निढाल |
दुनिया का यह , अद्भुत कमाल ||
पद्धरि छंद आधारित मुक्तक
फागुन की जब आती बहार |
गोरी मन की खिलती किनार |
अंगो की मादकता अनंग –
प्रीतम हो सँग करती विचार |
देखें सब गोरी मन की उमंग |
नेह दिखे तन लम्बी सुरंग |
सांसों में है चढ़ता उतार –
महके लगते है रोम अंग |
सुभाष सिंघई
========================
#अरिल्ल छंद –
16 मात्रा , चार चरण, सम मात्रिक छंद,
चरणान्त में भगण 211 या यगण 122
अ-चरणांत २११
लोभ कपट रहता जब आकर |
दुखिया में रहता सब पाकर ||
मान न माने वह सब लेकर |
पछताता रहता सब खोकर ||
ब-चरणांत-१२२
जग चिड़िया है रैन बसेरा |
फिर भी कहता यह सब मेरा ||
माया का रहता जब घेरा |
रहता कुहरा पास घनेरा ||
=====================
#अड़िल्ल छंद –16 मात्रिक सम मात्रिक छंद,
चरणान्त में दो लघु -दो गुरु
मुक्तक –
जिसने प्रभुवर को अपनाया |
प्रभुवर ने उसको चमकाया ||
हम तो उनको गुरुवर माने ~
सीखा हमने जो सिखलाया |
प्रभुवर के सँग जो रहता है |
गान हमेशा वह करता है |
कौन उसे आकर उलझाए ~
वह कब संकट से डरता है
जिस घर दुख डेरा रहता है |
निज साया निज से डरता है |
डर भी जाता है उजियारा –
तब कोई मदद न करता है ||
©®सुभाष सिंघई
एम•ए• {हिंदी साहित़्य , दर्शन शास्त्र)
(पूर्व) भाषा अनुदेशक , आई•टी •आई • )टीकमगढ़ म०प्र०
निवास -जतारा , जिला टीकमगढ़ (म० प्र०)
=========================