*संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ/ दैनिक रिपोर्ट*
संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ/ दैनिक समीक्षा
17 अप्रैल 2023 सोमवार प्रातः 10:00 बजे से 11:00 बजे तक
आज बालकांड दोहा संख्या 309 से दोहा संख्या 328 तक का पाठ हुआ। रवि प्रकाश के साथ मुख्य सहयोग श्रीमती मंजुल रानी का रहा।
अनेक रस्मों के साथ राम-सीता विवाह
कथा-क्रम में सीता-स्वयंवर के पश्चात राम-सीता विवाह का विवरण तुलसीदास जी की सशक्त लेखनी से चलता रहा। इसी क्रम में राजा जनक ने कुशध्वज की कन्या मांडवी का विवाह भरत जी से, सीता जी की छोटी बहन उर्मिला का विवाह लक्ष्मण जी से तथा शत्रुघ्न का विवाह श्रुतकीर्ति से कराया।
ससुराल के महत्व पर जनकपुरी की स्त्रियां विशेष रूप से प्रकाश डालती हैं । वह कहती हैं कि विवाह के बाद रामचंद्र जी का ससुराल आना-जाना लगा रहेगा क्योंकि यहां उनका विशेष अतिथि-सत्कार होगा और ऐसे अतिथि-सत्कार से भरे हुए सास और ससुर वाली ससुराल भला किसे प्रिय नहीं होती?
विविध भॉंति होइहि पहुनाई। प्रिय न काहि अस सासुर माई (दोहा 310)
यहॉं पाहुन अर्थात अतिथि तथा पहुनाई का अर्थ अतिथि का सत्कार है।
भगवान राम का विवाह हेमंत ऋतु में अगहन के महीने में हुआ था। रामचरितमानस प्रमाण है:-
हिम रितु अगहन मास सुहावा (दोहा 311)
भगवान राम का विवाह गोधूलि बेला में हुआ था। गोधूलि बेला भगवान राम के समय से विवाह संस्कार के लिए बहुत अच्छी मानी जाती रही है। तुलसीदास जी ने गोधूलि बेला में राम सीता के विवाह की लग्न के संबंध में निम्नलिखित प्रकार से दोहा लिखा है :-
धेनु धूरि बेला विमल, सकल सुमंगल मूल (दोहा 312)
गोधूलि बेला को साधना कठिन होता है क्योंकि लेटलतीफी के कारण यह समय अनेक बार हाथ से निकल जाता है। समय को साधने के लिए समय के अनुशासन को साधना पड़ता है। राम विवाह में राजा जनक ने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि समय से देरी न होने पाए।
बरात के पहुंचने पर भगवान राम के अलौकिक सौंदर्य को देखकर सीता जी की माताजी सुनैना जी को अत्यंत हर्ष होना स्वाभाविक है। अच्छे दामाद को देखकर भला कौन सास प्रसन्न नहीं होगी !
तुलसीदास जी लिखते है:-
जो सुख भा सिय मातु मन, देखि राम वर वेषु। सो न सकहिं कहि कल्प शत, सहस शारदा शेषु।। (दोहा 318)
अर्थात जो सुख रामचंद्र जी को देखकर उनकी सास को प्राप्त हो रहा है ,उस सुख का वर्णन सरस्वती जी और शेष जी कदापि नहीं कर सकते।
विवाह में सर्वप्रथम वशिष्ठ जी और विश्वामित्र जी की पूजा महाराज जनक ने की। उसके बाद ही महाराज दशरथ जी की पूजा हुई। इससे पता चलता है कि प्राचीन भारत में सर्वप्रथम पूजे जाने का अधिकार विद्वानों और ऋषि-मुनियों को था। इसके बाद में ही समस्त बारातियों की आवभगत हुई।
विवाह में एक रस्म हवन के साथ-साथ गॉंठ जोड़ने की रस्म भी होती है । तदुपरांत भॉंवरों की रस्म होती है। इस अति प्राचीन रस्म को तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में निम्नलिखित शब्दों में अंकित किया है :-
करि होम विधिवत गांठि जोड़ी, होन लागीं भावॅंरी (दोहा 323)
आगे लिखते हैं :-
कुॲंरु कुॲंरि कल भावॅंरि देहीं (दोहा 324)
विवाह के अवसर पर अग्नि को साक्षी मानकर वर और वधू के दुपट्टे में आपस में गठजोड़ कर उनके द्वारा हवन कुंड के चारों ओर फेरे लगाने को ही भॉंवरे पड़ना कहते हैं ।इसी को फेरे पड़ना भी कहते हैं। सात फेरे आमतौर पर विवाह में लिए जाते हैं । रामचरितमानस में भंवरों अर्थात फेरों की संख्या तो नहीं लिखी है लेकिन हवन होना ,गांठ जोड़ना तथा फेरे अर्थात भंवरे होने की बात बार-बार कही गई है। दूल्हे द्वारा दुल्हन की मांग में सिंदूर भरने की प्रथा भी भगवान राम और सीता के द्वारा संपादित हुआ जाना रामचरितमानस ने बताया है। इसीलिए तो तुलसी लिखते हैं कि रामचंद्र जी सीता जी के सिर में अर्थात मांग में सिंदूर देते हैं:-
राम सीय सिर सेंदुर देही
सौभाग्य का विषय है कि हजारों साल राम-सीता के विवाह को हो गए । सैकड़ों साल पहले तुलसी ने रामचरितमानस लिखा। लेकिन फिर भी विवाह की आधारभूत परिपाटी ज्यों की त्यों है । यह भारत में प्राचीन संस्कृति के सजीव रूप से उपस्थित होने का प्रमाण है।
विवाह के समय एक रस्म लहकौरी होती है। तुलसीदास जी ने इसको रामचरितमानस में निम्न शब्दों से आकार दिया है:-
लहकौरि गौरि सिखाव रामहि, सीय सन सारद कहें (दोहा 326)
लहकौरी अथवा लहकौर एक सुंदर-सी रस्म होती है जिसके अंतर्गत वर और वधू एक दूसरे को भोजन कराते हैं अर्थात ग्रास अथवा कौर देते हैं। तुलसीदास जी ने लिखा है कि राम-सीता के विवाह में लहकौर कैसे करते हैं, इसे पार्वती जी ने राम जी को सिखाया और सरस्वती जी ने सीता जी को सिखाया। भॉंति-भॉंति की रस्में तथा हास-परिहास भारतीय विवाह पद्धति की एक अपनी ही सुंदरता है। इसमें अत्यंत आत्मीयता पूर्वक हंसी-मजाक के क्षण उपस्थित होते हैं, जिसमें कोई पक्ष किसी का किसी बात पर बुरा नहीं मानता । इसलिए तुलसी लिखते हैं:-
जेवॅंत देहिं मधुर धुनि गारी। लै लै नाम पुरुष अरु नारी (दोहा 328)
अर्थात पुरुष और स्त्रियों के नाम ले लेकर स्त्रियां जेवॅंत अर्थात भोजन करते समय बहुत मधुर ध्वनि से गाली गाती हैं। अर्थात आत्मीयता पूर्वक हास-परिहास करती हैं । जब विवाह संबंध बन जाते हैं, तब जो निकटता स्थापित होती है उसमें केवल औपचारिकताओं की सीमाएं नहीं रहती। यह तुलसी के काव्य की विशेषता है कि उसमें हमें राम-सीता विवाह के वर्णन के बहाने भारतीय लोकजीवन में विवाह की विविध रस्मों के वर्णन प्राप्त हो जाते हैं। तुलसी की प्राणवान लेखनी को बार-बार प्रणाम।
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लेखक : रवि प्रकाश (प्रबंधक)
राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय(टैगोर स्कूल), पीपल टोला, निकट मिस्टन गंज, रामपुर, उत्तर प्रदेश
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