नैतिकता ज़रूरत है वक़्त की
फिलहाल में हमारे देश में जिस प्रकार का असंतोष का वातावरण बना और जिस प्रकार हमारे समाज और देश को तोड़ने वाली जो समस्याएं उत्पन्न हुई उसके पीछे राजनीति, नफ़रत, आक्रोश ही नहीं बल्कि इसका एक महत्वपूर्ण कारण लोगों में दिन प्रतिदिन ख़त्म होती जा रही नैतिकता के अभाव का होना भी था, वो नैतिकता का गुण जिसका होना इंसान को इंसान होने का गौरव प्रदान करता है और जिसका अभाव इंसान और जानवर के अंतर को मिटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ,अब आप स्वयं समझ सकते हैं कि इसका हमारे अंदर होना कितना आवश्यक है कि इसके न होने से हम इंसान से सीधे जानवर की श्रेणी में आ जाते हैं।
बहरहाल ज़्यादा विस्तार में न जाकर हमारा यह समझना बहुत आवश्यक है कि नैतिकता हमारी ज़िन्दगी को ही आसान नहीं बनाती है बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से हमें आपस में जोड़ने और देश की एकता-अखंडता को मज़बूती प्रदान करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है इसके साथ ही यहाँ इस बात को भी समझना बहुत आवश्यक है कि हम जिस धर्म के नाम पर एक दूसरे से नफ़रतें पालते हैं वो धर्म भी नैतिक मूल्यों के अभाव में अधूरा है, क्योंकि इंसान में नैतिक मूल्यों का होना ही धर्म है और जिसमें ये नहीं तो ज़ाहिर सी बात है कि उसे स्वयं को धार्मिक कहलाने का भी कोई अधिकार नहीं, ये नैतिक गुण ही तो हैं जो हमें सच-झूठ, अच्छे -बुरे, सही और ग़लत में अंतर करना भी सिखाता है ,वहीं एक इंसान को दूसरे इंसान के एहसास से जोड़ कर भी रखता है इसलिए वर्तमान समय में इसकी आवश्यकता बहुत है क्योंकि इसके अभाव में आज इंसान बिख़राव की स्थिति में आ खड़ा हुआ है और सोचने वाली बात यह है कि जब एक इंसान बिखरता है तो उसके साथ उसका परिवार, समाज के साथ देश भी बिखरने लगता है, इसलिए यहाँ युवा वर्ग की ज़िम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है कि वो अपनी सोच को विस्तार दे और यथा सम्भव अपनी सोच में परिवर्तन भी लाये, सामाजिक समस्याओं का शान्त मन से समाधान तलाशे,वहीं अच्छी मानसिकता और अपने अच्छे व्यवहार से एक अच्छे समाज का निर्माण करने में भी अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करे,वहीं माँ रूप में नारी वर्ग का भी कर्तव्य बनता है कि वो अपने बच्चों में आरम्भ से ही नैतिक गुणों का विकास करें ,वहीं हम लोग इस बात का भी विशेष ध्यान रखें कि हम जैसा बोयेंगे वैसा ही काटेंगे, ये देश हमारा है तो इसकी समस्याएं भी हमारी हैं और ये समस्याएं आप या मैं से नहीं बल्कि हमारे एक होने से ख़त्म होंगी और वो तब ख़त्म होंगी जब हम अपने अंदर नैतिक गुणों को विकसित करेंगे और उसे अपने जीवन और व्यवहार का हिस्सा बनायेंगे ,वरना इसके अभाव में नुकसान केवल हमारा और बस हमारा है ।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद