नव विहान: सकारात्मकता का दस्तावेज
समीक्ष्य कृति- नव विहान ( गीतिका संग्रह)
कवि- रामकिशोर ‘रवि’
प्रकाशक- जिज्ञासा प्रकाशन, गाजियाबाद
प्रथम संस्करण-2022
पृष्ठ-180
मूल्य-₹200 (पेपर बैक)
नव विहान: सकारात्मकता का दस्तावेज
‘ नव विहान ‘ गीतिका संग्रह के बारे में कुछ लिखने से पूर्व गीतिका के विषय में चर्चा करना आवश्यक है। परिवर्तनशीलता प्रकृति का एक अद्भुत गुण है। साहित्य भी इस परिवर्तन से अछूता नहीं रहता है।आज वह समय है जब हिंदी प्रेमी, साहित्यानुरागी लोगों के द्वारा हिंदी भाषा और हिंदी के पारंपरिक सनातनी छंदों की ओर रूझान बढ़ा है। लोग न केवल कथ्य को सनातनी छंदों के माध्यम से व्यक्त कर रहे हैं वरन छंदों के साथ प्रयोग भी कर रहे हैं। छंदों के साथ अभिनव प्रयोग का ही परिणाम गीतिका है। पारंपरिक हिंदी छंदों को आधार बनाकर गजल की तर्ज पर लिखी गई रचना गीतिका कहलाती है।गीतिका में हिंदी व्याकरण और शब्दों के प्रयोग पर बल दिया जाता है।आम बोलचाल के किसी भी भाषा का प्रयोग वर्जनीय नहीं होता है।
श्री रामकिशोर ‘रवि ‘ का ‘नव विहान’ गीतिका संग्रह की कुछ प्रकाशित पुस्तकों में से एक है।इस कृति में कवि की मापनीयुक्त छंदों -विजात, महालक्ष्मी,पारिजात,वाचिक बाला,शक्ति आनंदवर्धक, सुमेरु, वाचिक स्रग्विणी,वाचिक भुजंगप्रयात,सार्द्धमनोरम ,मधुवल्लरी, सिंधु, रजनी, वाचिक चामर,संपदा,दिग्पाल गीतिका,विधाता, हरिगीतिका, वाचिक द्विमनोरम और वाचिक गंगोदक, पर आधारित 156 गीतिकाएँ हैं। माँ को समर्पित इस गीतिका संग्रह में भाषा एवं भाव का अनूठा संगम है।रवि जी ने सहज,सरल भाषा के माध्यम से अपनी बात को पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास किया है।सहज-सरल भाषा भले ही कवि के पांडित्य ज्ञान का प्रदर्शन न करे परंतु आम पाठकों को अपनी ओर आकृष्ट करने में अवश्य सक्षम होती है।
वैसे तो ‘नव विहान’ की सभी गीतिकाएँ उत्कृष्ट हैं। प्रत्येक युग्म एक सकारात्मक संदेश से परिपूरित है , जो कवि के जीवनानुभव और पैनी नज़र को द्योतित करता है।प्रकृति प्रत्येक व्यक्ति को रिझाती है फिर रवि जी इससे अछूते कैसे रहते। प्रकृति के मनोरम रूप को व्यक्त करता मानवीकरण से युक्त प्रथम गीतिका का प्रथम युग्म अवलोकनीय है-
प्रकृति जब मुस्कराती है। सकल जग को रिझाती है।( पृष्ठ 23)
जीवन का सबसे बड़ा सुख नीरोगी काया माना जाता है।इसके लिए आहार-विहार, योग और व्यायाम आवश्यक है।जो व्यक्ति इन बातों का ध्यान नहीं रखता ,उसे न केवल कष्ट भोगने पड़ते हैं वरन मेहनत की कमाई का अधिकांश हिस्सा चिकित्सा में बर्बाद हो जाता है।इस बात को बड़े ही सहज ढंग से एक युग्म में व्यक्त किया गया है-
योग-व्यायाम करते न जो, धन बहाते हैं उपचार में।(पृष्ठ-29)
बेटी की विदाई का क्षण अत्यंत मार्मिक होता है। केवल माँ-बाप ही नहीं वरन उस समय उपस्थित दोस्त -रिश्तेदार और आसपास के लोग भी भावुक हुए बिना नहीं रह पाते। उनकी आँखों की कोर भी नम हो जाती है।इस दृश्य को ‘रवि जी’ के एक युग्म में बखूबी देखा जा सकता है-
पालकी जब उठी रवि सुता की तभी, आँख सबकी वहाँ भर गई देखिए। (पृष्ठ-70)
समाज में बढ़ रहे विद्वेष से कवि मन भी व्यथित है। साम्प्रदायिक सद्भाव का ताना-बाना जब छिन्न-भिन्न होता है तो प्रत्येक व्यक्ति पर इसका प्रभाव पड़ता है।आज सभी संविधान प्रदत्त अधिकारों की तो बात करते हैं पर उसी संविधान ने हमारे लिए जो कर्तव्य निर्धारित किए हैं ,उनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता।यह एकांगी दृष्टि देश और समाज के लिए चिंताजनक है। इस संबंध में एक युग्म द्रष्टव्य है-
जहाँ देखो वहीं अब हो रहीं तकरार की बातें। नहीं कर्तव्य करते हैं करें अधिकार की बातें। ( पृष्ठ 139)
मन की शांति के लिए भजन-पूजन आवश्यक होता है।प्रायः यह माना जाता है कि घर-परिवार में रहकर ईश्वर प्राप्ति का उपाय नहीं किया जा सकता है , जबकि यह सही नहीं है। कबीरदास जी ने भी तो गृहस्थ रहते हुए ईश्वर प्राप्ति की थी।जब कबीरदास ऐसा कर सकते हैं तो दूसरे लोग क्यों नहीं। भोग-विलास और भौतिकता में उलझे हुए लोगों को सलाह देते हुए ‘रवि जी’ लिखते हैं-
घर को तपोवन-सा बना लें चाह क्यों वनवास की। पूजन-भजन घर में करें इच्छा तजें संन्यास की। ( पृष्ठ-145)
यह गीतिका संग्रह ऐसे अनेक युग्मों से युक्त है ,जो हमें अपनी सोच सकारात्मक रखने और बदलने की प्रेरणा देते हैं। गीतिकाओं में केवल मनोरंजन की एवं तुकबंदी की लफ्फाजी नहीं है। ‘केवल मनोरंजन न कवि का धर्म होना चाहिए। इसमें उचित उपदेश का मर्म होना चाहिए।’ गुप्त जी के इस संदेश को शत-प्रतिशत चरितार्थ करती गीतिकाएँ नवोन्मेषक हैं।
कवि ने मापनीयुक्त मात्रिक छंदों का गीतिकाओं में अत्यंत कुशलतापूर्वक निर्वहन किया है। युग्मों में पौराणिक मिथकों और मुहावरों का प्रयोग अर्थगांभीर्य और प्रभावोत्पादकता की सृष्टि में सहायक है।माधुर्य, लालित्य और सरसता से आविष्ट ‘नवविहान’ की गीतिकाएँ पाठकों को एक सकारात्मक दृष्टि प्रदान करती हैं।पठनीय और संग्रहणीय यह गीतिका संग्रह निश्चित रूप से साहित्य जगत में अपना यथेष्ट रचनात्मक अभिप्रेत के कारण प्राप्त करेगी। इस उपादेय कृति के लिए कृतिकार को अशेष शुभकामनाएँ!
डाॅ बिपिन पाण्डेय