नट,नटी का ‘कोरोना’संवाद
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नट
प्रिये!आ,
आज ध्वंस का नाच करेंगे।
मानव का हर भरम तोड़ने
आओ, उसको काँच करेंगे।
जिस संस्कृति से पाला प्रभु ने,
उस विस्मरण हित दंडित कर दें। ।
सभ्यता से अति गर्वित मन को
तने हुए हर मानव तन को
आओ प्रिय अब खंडित कर दें।
नटी
स्वर्ग से पृथ्वी होड़ लगाती
मानव को है देव बनाती।
सूर्य किरण छू,छूकर जिसको
अवर्णननीय है हर्षित होता।
चंद्रकिरण कर चूम, चूमकर
जिसको प्रीत से है दीक्षित होता।
मानव मन को तंग किया तो।
‘उसकी’ कृति को भंग किया तो।
नीरव पृथ्वी हो जाए ना।
वहाँ खड़ा विकराल ‘कोरोना’।
हमें है जन-जन को सहलाना।
उनके मन में अभय जगाना।
नट
किन्तु,प्रिये क्या देखा तुमने?
प्रस्तुत है क्या सब कुछ सुनने?
व्याधि ‘कोरोना’सा द्वार आ गया।
मृत्यु और है दस्तक दे गया।
नहीं औषधि न है उपचार।
फिर भी मूर्ख सा करता रार।
यूं ही चला तो नाच उठेंगे।
गीत ध्वंस के बाँच उठेंगे।
नटी
आर्य, मुझे यूं विचलित न करें।
‘काल’ हमें ही विस्मित न करे।
बुद्धि,तर्क से मानव सज्जित।
है प्रयासरत ढूँढने औषध।
पूर्व इसके उपचार कहें कुछ।
ध्वंस-नृत्य का विचार नहीं कुछ।
नट
प्रिय,संकल्प में अति शक्ति है।
अनुशासन भी बड़ी युक्ति है।
विद्वजनों ने अध्ययन करके।
अनुभवों का मंथन करके।
कुछ पथ तो प्रस्तावित है कर दिया।
‘संक्रमण से कैसे बचना’रख दिया।
मानव को आओ समझा दें।
व्याधि को छुद्र बना ही डालें।
नट,नटी (समवेत स्वर)
हे मनुष्य,इसके प्रहार से बचने हेतु।
संसर्गों से दूर रहें व प्रसार का तोड़ें सेतु।
लापरवाह बनो ना मानव।
तेरे द्वार ‘कोरोना’ सा दानव।
इसका मंतव्य सिर्फ विनाश है।
साथ में आ जा,जो प्रयास है।
इस व्याधि के और आयाम हैं।
अर्थ,सभ्यता,संस्कृति के आगे
न जाने क्या,क्या विराम है।
खुद को जीवित रखने के लिए।
‘कोरोना’ ना जाने क्या,क्या कर ले।
अत: इसे भस्म करना ही है।
यह प्रण मन में धरना ही है।
हम मंगल की करते कामना।
प्रभु से करुणा की और याचना।
इस रण में विश्व की जय हो।
‘कोरोना’ तत्काल ही क्षय हो।
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