धूप सुहानी
धूप सुहानी
सर्दी की गुनगुनी धूप
आंगन में बैठी इठला रही है
दादी के अचार पर बैठी
नींबू मिर्ची के चटखारे ले रही है
माँ के स्वेटर बुनते हुए हाथों को सैक रही है
दीदी भईया की धमाचौकड़ी मची हुई है
आंगन में लगे अमरुद की खशबू
अपनी और मुझे खींच रही है
किचिन से आती साग की सुगंध
दादाजी की परोसी थाली पर
बैठी धूप मक्का की रोटी सांग का आनंद लें रही