दोहा पंचक. . .
दोहा पंचक. . . .
साथ श्वांस के रुक गया, जीवन का संघर्ष ।
आँचल अंक विषाद के, मौन हुआ हर हर्ष ।।
जैसे-जैसे दिन ढले, लम्बी होती छाँव ।
काल समेटे जिन्दगी, थमते चलते पाँव ।।
इच्छाओं की आँधियाँ, आशाओं के ढेर ।
क्या समझेगी जिन्दगी, साँसों का यह फेर ।।
पगडंडी पक्की हुई, क्षीण हुए सम्बंध ।
अर्थ क्षुधा में खो गई, वो चूल्हे की गंध ।।
पत्थर सारे मील के, सड़क किनारे मौन ।
अपने अन्तिम अंक को, पढ़ पाया है कौन ।।
सुशील सरना / 17-12-23