Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Oct 2024 · 2 min read

कभी आप अपने ही समाज से ऊपर उठकर देखिए।

कभी आप अपने ही समाज से ऊपर उठकर देखिए।
तो पता चलेगा की आपके विरोधी कितने है।
कभी आप अपने तेवर में जमकर आइए।
तो पता चलेगा की शोर कितना है।
कितनी आंखो में रोशनी की जगह।
क्रोध की चिंगारी होगी।
तुम्हे गिराने में न जाने।
कितने लोगो की मिलकर तैयारी होगी।
रचा जाएगा षड्यंत्र तुझे मारने का भी।
पर मजा तो तब आएगा ।
जब उनकी हर बाजी उल्टी होगी।
महफिल ज़मी है अप्सराओं से।
मतलब यह नहीं की तुम खूबसूरत कितनी हो।
फर्क तो बस इससे पड़ेगा।
की उन महफिल में तुम्हारे दीवाने कितने है।
कौन चाहता है की तू इतिहास रचे।
तेरे खिलाफ तो यहां हर कोई साजिश रचते हैं।
दुनिया की छोड़ सबसे पहले तो तेरे पड़ोसी ही जलते है।
विरोध का स्वर तो पहले गूंजता है अपने ही आशियाने में।
नही तो कौन क्या जाने क्या चल रहा है ज़माने में।
कहने को तो तेरे हजार दोस्त है।
पर मायने तो यह रखता है।
तेरे मुश्किल हालात में साथ खड़े कितने है।
भ्रम में जीना छोड़ दो।
हकीकत से नाता जोड़ लो।
इस बेगानी दुनिया में।
बिना स्वार्थ के दीवाने अब्दुल्ला कितने है।
किनारे से क्या देखता है समंदर को।
समंदर में उतर कर देख।
उसके लहरों में ताकत कितनी है।
जल जाने दो उसे पूरे तपिश में।
शांत होने पर पता चलता है ।
उसमे ज्वालाओं की गर्मी कितनी है।
होता है सामना जब इस भौतिक दुनिया के।
लाख दुखों से तो पता चलता है।
की उसमे जीने की चाहत कितनी है।
तोड़ दे जो किसी का गुरूर।
तो पता चलता है उसमे स्वाभिमान कितना है।
अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने वालो को छोड़ो।
असली प्रमाण तो जनता से मिलता है।
की किसी का आत्मसम्मान कितना है।
मांगो कभी किसी से तो एक बार।
तो उससे पता चलता है की वो कद्रदान कितना है।
बार बार मांगना तो काम है भिखारियों का।
जो मदद के लिए रहे सदा ही खड़ा।
तो पता चलता है की वो महान कितना है।

RJ Anand Prajapati

Language: Hindi
87 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

जीवन की आपाधापी में देखता हूॅं ,
जीवन की आपाधापी में देखता हूॅं ,
Ajit Kumar "Karn"
"शब्दों से बयां नहीं कर सकता मैं ll
पूर्वार्थ
दूध, दही, छाछ, मक्खन और घी सब  एक ही वंश के हैं फिर भी सब की
दूध, दही, छाछ, मक्खन और घी सब एक ही वंश के हैं फिर भी सब की
ललकार भारद्वाज
മറന്നിടാം പിണക്കവും
മറന്നിടാം പിണക്കവും
Heera S
सियाचिनी सैनिक
सियाचिनी सैनिक
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
सैनिक का खत।
सैनिक का खत।
Abhishek Soni
अपना-अपना दुःख
अपना-अपना दुःख
Dr. Kishan tandon kranti
उधारी
उधारी
Sandeep Pande
विचलित
विचलित
Mamta Rani
विचारिए क्या चाहते है आप?
विचारिए क्या चाहते है आप?
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
फिर कैसे विश्राम हो कोई ?
फिर कैसे विश्राम हो कोई ?
AJAY AMITABH SUMAN
जलधर
जलधर
डा. सूर्यनारायण पाण्डेय
रोज आते कन्हैया_ मेरे ख्वाब मैं
रोज आते कन्हैया_ मेरे ख्वाब मैं
कृष्णकांत गुर्जर
खुद ही थामे बैठा हूं, औजार अपनी बर्बादी का,
खुद ही थामे बैठा हूं, औजार अपनी बर्बादी का,
SPK Sachin Lodhi
तुम वह दिल नहीं हो, जिससे हम प्यार करें
तुम वह दिल नहीं हो, जिससे हम प्यार करें
gurudeenverma198
రామయ్య రామయ్య
రామయ్య రామయ్య
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
मन का प्रोत्साहन
मन का प्रोत्साहन
Er.Navaneet R Shandily
ग़ज़ल 1
ग़ज़ल 1
Deepesh Dwivedi
मन तो मन है
मन तो मन है
Pratibha Pandey
प्रेम क्या है?
प्रेम क्या है?
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
श्री रामलला
श्री रामलला
Tarun Singh Pawar
तुम जो आसमान से
तुम जो आसमान से
SHAMA PARVEEN
शिक्षक को शिक्षण करने दो
शिक्षक को शिक्षण करने दो
Sanjay Narayan
गीत- जहाँ मुश्क़िल वहाँ हल है...
गीत- जहाँ मुश्क़िल वहाँ हल है...
आर.एस. 'प्रीतम'
अजब गजब
अजब गजब
Akash Yadav
एक तमाशा है
एक तमाशा है
Dr fauzia Naseem shad
17. Eat Right
17. Eat Right
Ahtesham Ahmad
माता से बढ़कर नही गुरूवर कोई होय
माता से बढ़कर नही गुरूवर कोई होय
Dr Archana Gupta
..
..
*प्रणय प्रभात*
वक्त नहीं बचा था व्यक्त करने व्यथा
वक्त नहीं बचा था व्यक्त करने व्यथा
Arun Prasad
Loading...