टेलिस्कोप पर शिक्षक सर्वेश कांत वर्मा जी और छात्रों के बीच ज्ञानवर्धक चर्चा
टेलिस्कोप पर शिक्षक सर्वेश कांत वर्मा जी और छात्रों के बीच ज्ञानवर्धक चर्चा
(विद्यालय के विज्ञान कक्ष में सभी छात्र शिक्षक सर्वेश कांत वर्मा जी का इंतजार कर रहे हैं। आज की चर्चा का विषय है “टेलिस्कोप।”)
सर्वेश कांत वर्मा जी: नमस्ते बच्चों! आज हम एक बेहद दिलचस्प उपकरण के बारे में बात करेंगे, जिसे हम टेलिस्कोप कहते हैं। आप में से कोई बता सकता है कि टेलिस्कोप क्या होता है?
अरुण: सर, टेलिस्कोप एक ऐसा उपकरण है जिससे हम दूर स्थित वस्तुओं को करीब से देख सकते हैं। खासकर आकाशीय पिंडों को।
सर्वेश कांत वर्मा जी: बहुत सही कहा, अरुण! टेलिस्कोप एक ऑप्टिकल उपकरण है जो हमें दूर स्थित वस्तुओं को स्पष्ट और बड़ा दिखाने में मदद करता है। आप में से कोई जानता है कि टेलिस्कोप का आविष्कार किसने किया था?
दिवांशी: सर, क्या यह गैलीलियो ने किया था?
सर्वेश कांत वर्मा जी: अच्छा प्रश्न है दिवांशी। गैलीलियो ने टेलिस्कोप को सबसे पहले आकाशीय पिंडों का अध्ययन करने के लिए उपयोग किया था, लेकिन इसका आविष्कार डच वैज्ञानिक “हंस लिपरशी” ने 1608 में किया था। गैलीलियो ने इसे और विकसित किया और इसका इस्तेमाल चंद्रमा, बृहस्पति के चंद्रमाओं और आकाशगंगा की खोज के लिए किया।
श्वेतिमा: सर, क्या टेलिस्कोप केवल एक प्रकार का होता है?
सर्वेश कांत वर्मा जी: नहीं श्वेतिमा, टेलिस्कोप मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं – “प्रतिवर्ती टेलिस्कोप” (Refracting Telescope) और “परावर्ती टेलिस्कोप” (Reflecting Telescope)। प्रतिवर्ती टेलिस्कोप में लेंस का उपयोग होता है, जबकि परावर्ती टेलिस्कोप में दर्पण का। गैलीलियो ने प्रतिवर्ती टेलिस्कोप का उपयोग किया था, जबकि सर आइज़ैक न्यूटन ने परावर्ती टेलिस्कोप का आविष्कार किया।
सौराष्ट्र: सर, यह टेलिस्कोप इतने बड़े क्यों होते हैं?
सर्वेश कांत वर्मा जी: बहुत अच्छा सवाल, सौराष्ट्र! जितना बड़ा टेलिस्कोप होगा, उतना ही अधिक प्रकाश वह इकट्ठा कर सकता है, जिससे दूर स्थित और मंद आकाशीय पिंडों को भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इसलिए खगोलशास्त्री बड़े आकार के टेलिस्कोप का उपयोग करते हैं।
अरुण: सर, क्या हम भी इन टेलिस्कोप से तारे और ग्रह देख सकते हैं?
सर्वेश कांत वर्मा जी: बिल्कुल अरुण! टेलिस्कोप का उपयोग करके हम चंद्रमा की सतह, बृहस्पति के चार प्रमुख चंद्रमाओं, शनि के छल्लों और कई अन्य आकाशीय पिंडों को देख सकते हैं। यह एक अद्भुत अनुभव होता है।
दिवांशी: सर, आजकल के टेलिस्कोप कैसे काम करते हैं?
सर्वेश कांत वर्मा जी: आजकल के टेलिस्कोप काफी उन्नत हैं। वे सिर्फ प्रकाश को ही नहीं बल्कि रेडियो तरंगों, अवरक्त किरणों और एक्स-रे तरंगों को भी पकड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए, “हबल स्पेस टेलिस्कोप” एक ऐसा टेलिस्कोप है जो अंतरिक्ष में स्थित है और जो पृथ्वी पर होने वाले वातावरणीय हस्तक्षेप से मुक्त है। इसने ब्रह्मांड की कई अद्भुत तस्वीरें खींची हैं।
श्वेतिमा: सर, क्या हम भी अपने घर पर टेलिस्कोप बना सकते हैं?
सर्वेश कांत वर्मा जी: हाँ श्वेतिमा, हम एक साधारण टेलिस्कोप बना सकते हैं। इसके लिए हमें एक लेंस और एक पाइप की जरूरत होती है। आप इसे विज्ञान परियोजना के रूप में बना सकते हैं। हालांकि, यह बहुत अधिक विस्तृत और शक्तिशाली टेलिस्कोप नहीं होगा, लेकिन यह आपको आकाशीय पिंडों की ओर एक झलक जरूर देगा।
सौराष्ट्र: सर, क्या भविष्य में और भी उन्नत टेलिस्कोप बनाए जा सकते हैं?
सर्वेश कांत वर्मा जी: बिलकुल सौराष्ट्र! विज्ञान और तकनीक लगातार प्रगति कर रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में ऐसे टेलिस्कोप बनेंगे जो और भी अधिक दूर स्थित आकाशगंगाओं और तारों को स्पष्ट रूप से देख सकेंगे। “जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप” इसका एक अच्छा उदाहरण है, जो हबल से भी अधिक शक्तिशाली है।
अरुण: सर, आप टेलिस्कोप से आकाश देखना कब शुरू करेंगे?
सर्वेश कांत वर्मा जी: (मुस्कुराते हुए) जल्दी ही अरुण, हम एक विशेष सत्र आयोजित करेंगे, जिसमें आप सभी खुद टेलिस्कोप से आकाश में तारों को देख सकेंगे।
दिवांशी, श्वेतिमा, सौराष्ट्र और अरुण: वाह! धन्यवाद, सर!
सर्वेश कांत वर्मा जी: (हँसते हुए) कोई बात नहीं, बच्चों। ज्ञान की दुनिया में खोज हमेशा जारी रहनी चाहिए। टेलिस्कोप हमें यह सिखाता है कि हमारी दृष्टि केवल उतनी ही सीमित है, जितनी हम उसे होने देते हैं।
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यह संवादात्मक शैली टेलिस्कोप के विषय को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करते हुए छात्रों के मन में जिज्ञासा और ज्ञान को प्रोत्साहित करती है।
डॉ निशा अग्रवाल
शिक्षाविद, पाठयपुस्तक लेखिका जयपुर राजस्थान