झुग्गियाँ
आज सुनो मैं तुमको यारों, सच्ची बात बताता हूँ |
झुग्गी में रहने वालों की, इक तस्वीर दिखाता हूँ ||
दूषित पानी हवा विषैली, जैसी कई निशानी है |
ये प्यासे नित कूँआ खोदें, इनकी यही कहानी है |1|
कोई बच्चा फेंका जूठन, जहाँ प्यार से खाता है |
कोई बचपन से ही घर का, सारा बोझ उठाता है ||
यहाँ घरों में हर बालक का, जन्म कर्ज में होता है |
उम्र कर्ज में ही कटती है, कर्ज लिए ही सोता है |2|
कोई नन्ही बुधिया मुनिया, नग्न बदन दिख जाती है |
कोई बुढ़िया बिन इलाज के, घर में ही मर जाती है ||
नन्हे बच्चे जहाँ स्कूल का, मुँह तक देख न पाते है |
अपने अधिकारों से वंचित, अनपढ़ ही रह जाते है |3|
वोट समय ही नेताओं को, झुग्गी वाले भाते है |
वादों की भरमार लिए फिर, इनके दर वो आते है |
जूझ रहे इनके जीवन को, बहुत लोग फिल्माते है ||
दिखा तमाशा दुनिया को फिर, वो ऑस्कर पा जाते है |4|
कहीं घरों में इक रोटी पर, छीना झपटी होती है ||
और कहीं बस बिन खाये ही, बेबस माता सोती है |
लाचार पिता जब बच्चों को, स्वप्न दिखा बहलाता है |
तब इनके सब अरमानों को, बुलडोजर दहलाता है |5|
देख दुर्दशा कहता हूँ मैं, नही मिली आजादी है |
सब झूठे ही स्वप्न दिखाते पहन लिया जो खादी है ||
नालों में सड़ने की आखिर, इनकी क्यों मजबूरी है |
विकसित इक समाज से आखिर, क्यों कोसो की दूरी है |6|
नाथ सोनांचली