जिन्दगी शम्मा सी रोशन हो खुदाया मेरे
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
*गृहस्थ संत स्वर्गीय बृजवासी लाल भाई साहब*
आ जाते हैं जब कभी, उमड़ घुमड़ घन श्याम।
था मैं तेरी जुल्फों को संवारने की ख्वाबों में
वक्त और हालात जब साथ नहीं देते हैं।
आतंकवाद सारी हदें पार कर गया है
नजरो नजरो से उनसे इकरार हुआ
तू गीत ग़ज़ल उन्वान प्रिय।
शिव की बनी रहे आप पर छाया
किसी ने अपनी पत्नी को पढ़ाया और पत्नी ने पढ़ लिखकर उसके साथ धो