Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
18 May 2024 · 1 min read

ज़िन्दगी के निशां

यहाँ ज़िन्दगी की धड़कनें थम सी गई हैं,
चलो, दूसरे घर नहीं, तीसरे घर चलते हैं,
कहीं तो ज़िन्दगी में साँसें मौजूद हीहोंगी,
कि कहीं तो ज़िन्दादिली ही वजूदमें होगी।

ज़िन्दगी का ज़िन्दगी पे कहर अब जारी है,
मौत का कोई निशां भी नही अब बाकी है,
रूह पे रूह की चोट का असर बड़ा भारी है,
सम्बन्धों की झलक भी नही अब पाक़ी है।

ख़्वाहिशें अन्दर की जीते जी मरती ही रही,
ख़्वाब के भी टूटने की आस ज़िन्दा ही रही,
ज़िन्दगियों की अहमियत खत्म होती रही,
रूहों की रूहानियत भी खत्म ही होती रही।

ज़िन्दगी जीते जी जिन्दगी के निशां नहीं रहे,
जी हाँ, रूह के भी बचने के आसार नहीं रहे।

1 Like · 63 Views

You may also like these posts

ग़ज़ल
ग़ज़ल
Santosh Soni
बेख़्वाईश ज़िंदगी चुप क्यों है सिधार गयी क्या
बेख़्वाईश ज़िंदगी चुप क्यों है सिधार गयी क्या
Kanchan Gupta
प्यार की पुकार
प्यार की पुकार
Nitin Kulkarni
बनवास की अंतिम रात्रि
बनवास की अंतिम रात्रि
Shashi Mahajan
मेरा कौन यहाँ 🙏
मेरा कौन यहाँ 🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
बुजुर्गों की सेवा का पुण्य
बुजुर्गों की सेवा का पुण्य
Sudhir srivastava
जिस पर करते हैं टूट जाता है।
जिस पर करते हैं टूट जाता है।
Dr fauzia Naseem shad
कविता
कविता
Neelam Sharma
*पीयूष जिंदल: एक सामाजिक व्यक्तित्व*
*पीयूष जिंदल: एक सामाजिक व्यक्तित्व*
Ravi Prakash
बेहतर कल
बेहतर कल
Girija Arora
परिमल पंचपदी - नवीन विधा
परिमल पंचपदी - नवीन विधा
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
छठ परब।
छठ परब।
Acharya Rama Nand Mandal
पुरानी वैमनस्यता को भूलकर,
पुरानी वैमनस्यता को भूलकर,
Ajit Kumar "Karn"
दियो आहाँ ध्यान बढियाँ सं, जखन आहाँ लिखी रहल छी
दियो आहाँ ध्यान बढियाँ सं, जखन आहाँ लिखी रहल छी
DrLakshman Jha Parimal
मैं अपनी कहानी कह लेता
मैं अपनी कहानी कह लेता
Arun Prasad
प्रेम की प्रतिज्ञा
प्रेम की प्रतिज्ञा
रुचि शर्मा
आजकल ट्रेंड है रिश्ते बनने और छुटने का,वक्त की चाल पर टिका ह
आजकल ट्रेंड है रिश्ते बनने और छुटने का,वक्त की चाल पर टिका ह
पूर्वार्थ
जब एक लौ एक उम्मीद जला करती है,
जब एक लौ एक उम्मीद जला करती है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
"परछाई"
Dr. Kishan tandon kranti
निकले क्या पता,श्रीफल बहु दामाद
निकले क्या पता,श्रीफल बहु दामाद
RAMESH SHARMA
23/118.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/118.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
बाकी है...
बाकी है...
Manisha Wandhare
राजनीति गर्त की ओर
राजनीति गर्त की ओर
Khajan Singh Nain
Sir very very good story that give a best moral.
Sir very very good story that give a best moral.
Rajan Sharma
■ अनियंत्रित बोल और बातों में झोल।।
■ अनियंत्रित बोल और बातों में झोल।।
*प्रणय*
सिद्दत्त
सिद्दत्त
Sanjay ' शून्य'
अंदर की बारिश
अंदर की बारिश
अरशद रसूल बदायूंनी
मैं नन्हा नन्हा बालक हूँ
मैं नन्हा नन्हा बालक हूँ
अशोक कुमार ढोरिया
यह कौन सी तहजीब है, है कौन सी अदा
यह कौन सी तहजीब है, है कौन सी अदा
VINOD CHAUHAN
दिव्य-दोहे
दिव्य-दोहे
Ramswaroop Dinkar
Loading...