ज़िन्दगी के निशां
यहाँ ज़िन्दगी की धड़कनें थम सी गई हैं,
चलो, दूसरे घर नहीं, तीसरे घर चलते हैं,
कहीं तो ज़िन्दगी में साँसें मौजूद हीहोंगी,
कि कहीं तो ज़िन्दादिली ही वजूदमें होगी।
ज़िन्दगी का ज़िन्दगी पे कहर अब जारी है,
मौत का कोई निशां भी नही अब बाकी है,
रूह पे रूह की चोट का असर बड़ा भारी है,
सम्बन्धों की झलक भी नही अब पाक़ी है।
ख़्वाहिशें अन्दर की जीते जी मरती ही रही,
ख़्वाब के भी टूटने की आस ज़िन्दा ही रही,
ज़िन्दगियों की अहमियत खत्म होती रही,
रूहों की रूहानियत भी खत्म ही होती रही।
ज़िन्दगी जीते जी जिन्दगी के निशां नहीं रहे,
जी हाँ, रूह के भी बचने के आसार नहीं रहे।