जज्बा जगाता गढ़िया
कंक ऋषि की पावन तपोभूमि
कांकेर जिसका नाम,
दूध-नदी मध्य में बह कर देती
शान्ति का पैगाम।
गढ़िया पहाड़ खड़ा सीना तानकर
जो जगाता गजब का जज्बा,
राजा धर्मदेवकंड्रा के इस किले पर
कभी हुआ न औरों का कब्जा।
सोनाई-रुपई की वह अमर गाथा
है तो सदियों पुरानी,
राजा की उन दोनों बेटियों की
डूब मरने की कहानी।
गढ़िया के दामन में सदा मुस्काता
वो सोनाई-रुपई तालाब,
चाहे मौसम कोई भी रहे मगर
सूखते ना कभी आब।
महा-शिवरात्रि के दिन हर बरस
लगते यहाँ पर मेले,
हरियाली की सदा चादर ओढ़े
गढ़िया लगते अल्बेले।
(मेरी सप्तम काव्य-कृति : ‘सतरंगी बस्तर’ से..)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।