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7 Jun 2018 · 1 min read

–छाएँ यहाँ जी दिलों में–मन्दाक्रान्ता छंद

मन्दाक्रान्ता छंद की परिभाषा और कविता
मन्दाक्रान्ता छंद
——————-यह एक वर्णिक छंद है।इसमें चार चरण होते हैं।इसमें सत्रह अक्षर क्रमशः मगण,भगण,नगण,तगण,तगण और दो गुरू होते हैं।
मगण=SSS
भगण=SII
नगण=III
तगण=SSI
तगण=SSI
दो गुरू=SS
मन्दाक्रान्ता छंद की कविता

छाएँ यहाँ जी दिलों में
————————–
साथी मेरे हमसफ़र तू जा न छोड़े हमें रे।
चाहे मेरी हर नज़र तू जा न छोड़े हमें रे।
हो जाएंगें दर-बदर तू जा न छोड़े हमें रे।
मारे तेरी उठ फ़िकर तू जा न छोड़े हमें रे।

तेरी-मेरी हर क़सम टूटे न देखो कभी भी।
आहें-बाहें मिल डगर छूटे न देखो कभी भी।
रिस्ते-नाते रह अमर रूठे न देखो कभी भी।
आना-जाना सच सफ़र भूलें न देखो कभी भी।

प्रेमी सच्चा मिलकर सँवारे मनों को सदा ही।
नेमी अच्छा हँसकर निखारे मनों को सदा ही।
फूलों की बू बिखरकर ज्यों हर्ष लाती सदा ही।
इंसानों की रुह निखर त्यों हर्ष लाती सदा ही।

तेरा-मेरा कहकर विचारें न भूलें न वादा।
ऊँचा सोचें खुलकर करें ज़िंदगी का इरादा।
मिथ्या संसार समझ रहें तो ख़ुशी सार ज़्यादा।
लम्हा-लम्हा हँसकर करें जगत् का भार सादा।

गीतों जैसे मधुर बन गाएँ यहाँ जी दिलों में।
फूलों जैसा ज़िगर कर भाएँ यहाँ जी दिलों में।
राहों जैसा सफ़र कर आएँ यहाँ जी दिलों में।
आँखों जैसा असर कर छाएँ यहाँ जी दिलों में।

राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
———————————–

Language: Hindi
1 Like · 655 Views
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