चिन्तन का आकाश
अनन्त-असीम है
चिन्तन का आकाश
कुछ बातें जेहन में
छोड़ जाती अहसास
सोचता हूँ कभी-कभी
धन्यवाद, आभार, शुक्रिया
जैसे शब्दों को आखिर
क्यों रचा गया होगा,
लगता है इंसान का हृदय
हर्ष से भर गया होगा।
(प्रकाशित कृति : ‘सच का टुकड़ा’ से)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति