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29 Sep 2021 · 1 min read

चलो चाँद पर झूला डालें…

चलो चाँद पर झूला डालें…

आया सावन रूत मनभावन ,
चलो चाँद पर झूला लगाएं ।
ये धरती हुई अब हलकान,
चलो चाँद पर झूला डालें…

काम अभिषिक्त से तप रही धरती,
निर्मल प्रेम की क़दर नहीं है ।
प्रेम पुजारी, प्रेम प्रदर्शक,
मीरा और श्रीकृष्ण कहाँ है।
रास-रंग भी हो गई मैली,
मुरली की अब तान कहाँ हैं।
पंख फैलाए चलूँ चाँद पर,
वही पर अपना डेरा डालें ।
शीतल चाँदनी को ओढे़ हम,
मंद पवन में झुला झूले ।
मन बावरी हूई है अब तो,
चलो चाँद पर झूला डालें…

आया सावन रूत मनभावन ,
चलो चाँद पर झूला लगाएं ।
ये धरती हुई अब हलकान,
चलो चाँद पर झूला डालें…

धन वैभव तन से लिपटी है,
मन के प्रीत की पूछ नहीं है ।
प्रेम अनोखा आभूषण मन का,
स्वर्ण सुनहरा इसको ढक दी।
तन महलों की सेज पर सोया,
मन पिंजरे में सिसक रहा है ।
उद्धव कहे श्रीकृष्ण से अब तो,
राधा संग तुम अब बसो चाँद पर।
वहीं चाँद पर झूला डालो,
प्रेम की जगह अब ये वाजिब नहीं।
वहीं बांसुरी की तान तुम छेड़ो,
चलो चाँद पर झूला डालो ।

आया सावन रूत मनभावन ,
चलो चाँद पर झूला लगाएं ।
ये धरती हुई अब हलकान ,
चलो चाँद पर झूला डालें…

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि -२९ /०९/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201

Language: Hindi
10 Likes · 14 Comments · 880 Views
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