अनेकों पंथ लोगों के, अनेकों धाम हैं सबके।
भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला,
हसीब सोज़... बस याद बाक़ी है
क्यों गए थे ऐसे आतिशखाने में ,
वाणी का माधुर्य और मर्यादा
जरूरी नहीं की हर जख़्म खंजर ही दे
जीवन में जब संस्कारों का हो जाता है अंत
मेरा जीवन,मेरी सांसे सारा तोहफा तेरे नाम। मौसम की रंगीन मिज़ाजी,पछुवा पुरवा तेरे नाम। ❤️
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
*आया भैया दूज का, पावन यह त्यौहार (कुंडलिया)*
आग लगाते लोग
DR. Kaushal Kishor Shrivastava
हर खिलते हुए फूल की कलियां मरोड़ देता है ,
दोस्त.............एक विश्वास