चंद लकीरों में ही जी लेता हूँ ।
रहता हूँ भीड़ में शौक नहीं ये मजबूरी है मेरी।
डरता हूँ तन्हाई से तुम कहीं याद आ ना जाओ।।1।।
घूमता हूँ इधर उधर आजकल मैं यूँ ही रातों दिन यहाँ।
आता नहीं हूँ मैं तुम्हारें शहर तुम कहीं दिख ना जाओं।।2।।
ये मोहब्बत ही है मेरी कि तुम्हें कागज पे लिख रहा हूँ।
इजहारे ज़िन्दगी कर दूँ तुम कहीं बदनाम हो ना जाओं।।3।।
चंद लकीरों में ही जी लेता हूँ तुम्हें आजकल लिख कर।
गर हकीकत में पास आया तो तुम कहीं बर्बाद हो ना जाओं।।4।।
इश्क़ में तसव्वुर का होना तो हैं ही लाज़िमी बहुत।
तसव्वुर तो छोड़ो मैं सोता नहीं हूं तुम कहीं ख़्वाबों में आ ना जाओं।।5।।
तेरे ही लिए मैंने ज़िंदगी अपनी कर ली यूँ ही गुमनाम।
डरता हूँ गुनाहों को मेरे जानकर तुम कहीं डर ना जाओं।।6।।
तेरे साथ बीती जिन्दगी ही बस ज़िन्दगी थी मेरी वो।
है गुज़ारिश उन लम्हों से इक बार फिर से ज़िन्दगी में आ जाओं।।7।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ