” गुरुओं से शिष्टाचार सीखते हैंआखिर अभद्रता हममें कहाँ से आ जाती है ?”
” गुरुओं से शिष्टाचार सीखते हैंआखिर अभद्रता हममें कहाँ से आ जाती है ?”
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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हम याद करते हैं उन बीते हुए लम्हों को जिनकी क्षत्र छाया में रहकर शिष्टाचार ,माधुर्यता ,शालीनता , व्यवहार और सामाजिकता के पाठ को सीखते हैं और अपने व्याह्वारिक जीवन में उसका यथोचित प्रयोग करते हैं ! हमारा परवरिश ,पारवारिक परिवेश ,हमारा सामाजिक सौहाद्रता और हमारे प्रारंभिक बचपन के मित्र हमारी प्रारंभिक शिक्षा के स्रोत माने जाते है ! हमारी नींव यहीं से मजबूत होने लगती है ! ज्यों -ज्यों हम बड़े होने लगते हैं …हमें और बहुत कुछ सीखने को मिलता है !… हम अपने गुरुओं से भी शिष्टाचार ,……माधुर्यता ,……शालीनता , ……व्यवहार और …..सामाजिकता के पाठ सीखने का अवसर मिलता है ! इन मापदंडों के दावानल से झुलझकर हम और भी निखर जाते हैं ! हमारी मिशालें भी दी जाती है !….. लोग पूछते हैं …” आप किस परिवार से हैं ?..किस गाँव के हैं ?..आपने शिक्षा का मंत्र कहाँ से लिया ..?…आपके गुरु कौन थे ..?”…हम फिर गर्व से सर ऊँचा करके उन महान हस्तिओं को याद करते हैं जिनके आशीष से हम आज इस मुकाम तक पहुंचे हैं ! ….परन्तु कुछ लोग इन सारी उपलब्धियों को दरकिनार करके फेसबुक के पन्नों पर काली लालिमा को ही छोड़ने का संकल्प कर चुके हैं ! कभी अपशब्दों का बाजार गर्म करते हैं …आखिर इन भंगिमाओं से तो हमारी छवि ही धूमिल होने लगती है ! यदि कोई हम से पूछे ..”आपके गुरु कौन हैं .?..इसकी शिक्षा आपने कहाँ से ली ..?” ….शायद ही हम फक्र से कह सकें !..हम अपने विचार शालीनता से भी रख सकते हैं !…फिर इसका प्रभाव हमारे शारीर और मस्तिष्क पर पड़ता है ..साथ ही साथ हमारे आने वाली पीढियों को हम एक गलत परिवेशों की छाया पड़ने से हम रोक भी नहीं सकते ! …..विचार सबके अलग -अलग होते हैं पर यदि शिष्टाचार ,…..माधुर्यता ,…..शालीनता , …..व्यवहार और …..सामाजिकता के पाठ हम अंगीकृत कर लेंगे तो हम सफलता के उंच्चतम शिखर पर निश्चित ही पहुँच पाएंगे !
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत