“गीतिका”
गीतिका –
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ये’ जीवन विधाता का’ उपहार है |
ये’ माने वही जो समझदार है |
बुलाती हैं’ गलियाँ मे’रे देश की
विदेशी ये’ राहें कहाँ प्यार है |
बड़ा मोल अपनों का’ समझो इसे
निभाना सदा ही ये’ संसार है |
जगत के जो’ रस्ते हैं’ टेढ़े बने
न रखना सरोकार बेकार है |
सहज पथ ही’ चुनना गमन के लिए
सफर की घड़ी बस बची चार है |
मैं’ राही अकेला चला आ रहा
सँभालो विधाता ये’ मनुहार है |
मिले जब भी’ “छाया” ठहरना वहीं
समझ लो विधाता का’ आभार है |
“छाया”